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________________ १६ तीर्थंकर के और चरम तीर्थंकर के शिष्यों की शोधि विषम होगी। उनकी सर्वात्मना शुद्धि कैसे होगी ? आचार्य ने कहा-'शिष्य ! मैं कारण बताता हूं, तुम सुनो।' । १४६. कालस्स निद्धयाए, देहबलं घितिबलं च जं पुरिमे। तदणंतभागहीणं, कमेण जा पच्छिमा अरिहा॥ प्रथम तीर्थंकर के समय में काल की स्निग्धता के कारण मनुष्यों का जो देहबल और धृतिबल था वह क्रमशः चरम तीर्थंकर तक अनंतभाग हीन होता गया (शारीरिक बल और धृतिबल की विषमता के कारण विषम प्रायश्चित्त का विधान १४७. संवच्छरेणावि न तेसि आसी, जोगाण हाणी दुविहे बलम्मि। जे यावि धिज्जादि अणोववेया, तद्धम्मया सोधयते त एव॥ प्रथम तीर्थंकर के समय में शारीरिक बल और धृतिबलदोनों उपचित होने के कारण एक संवत्सर तक तपस्या करने पर भी संयमयोगों की हानि नहीं होती थी। शेष तीर्थंकरों के समय में कालदोष के कारण मुनि धतिबल और संहननबल से सम्पन्न नहीं होते, किंतु वे तद्धर्मता-प्रथम तीर्थंकर के मुनियों की भांति अशठता-ऋजुता आदि के कारण उनके समान ही शोधि को प्राप्त कर लेते हैं। १४८. पत्थगा जे पुरा आसी, हीणमाणा उ तेऽधुणा। माण भंडाणि धन्नाणं, सोधिं जाणे तहेव उ॥ १४८/१. जो जया पत्थिवो होति, सो तदा धन्नपत्थगं। ठावितेऽन्नं पुरिल्लेणं ववहरंते य दंडए। - प्राचीन काल में धान्य को मापने वाले जो प्रस्थक थे वे आज हीन माप वाले हो गये। जो धान्यभांड-धान्य के ढेर प्रस्थक परिमाण से मापे जाते थे, आज भी वे आज के प्रस्थक से मापे जाते हैं। इसी प्रकार प्रायश्चित्त के वैषम्य में भी अशठभाव से तपःकर्म में प्रवृत्त होने के कारण शोधि भी प्रस्थक दृष्टांत के तुल्य समझनी चाहिए। १४९. दव्वे खेत्ते काले, भावे पलिउंचणा चउविगप्पा। चोदग। कप्पारोवण, इहइं भणिता पुरिसजाया।। प्रतिकुंचना (प्रतिसेवना संबंधी माया) के चार प्रकार हैंद्रव्यविषयक, क्षेत्रविषयक, कालविषयक तथा भावविषयक। शिष्य पूछता है-कल्पाध्ययन में भी प्रायश्चित्त का विधान है और व्यवहार में भी वही है। फिर दोनों में अंतर क्या है? गुरु ने कहा-कल्पाध्ययन में प्रायश्चित्त का आरोपण है, आभवत् प्रायश्चित्त का कथन है तथा व्यवहार में दान प्रायश्चित्त का निरूपण है, आभवत् प्रायश्चित्त का कथन है। यह विशेष है। सानुवाद व्यवहारभाष्य कल्पाध्ययन में प्रायश्चित्तार्ह पुरुष का कथन नहीं है और यहां व्यवहार में प्रायश्चित्तार्ह पुरुष का कथन है। यह विशेष है। इस प्रकार दोनों में अंतर है? १५०. सच्चित्ते अच्चित्तं, जणवयपडिसेवितं तु अद्धाणे। सुब्मिक्खम्मि दुभिक्खे, हट्ठण तधा गिलाणेणं ।। द्रव्य विषयक प्रतिकुंचनाः-सचित्त द्रव्य की प्रतिसेवना कर कहे कि मैंने अचित्त की प्रतिसेवना की है। क्षेत्र विषयक प्रतिकुंचना-जनपद में प्रतिसेवना कर कहे कि मैंने मार्ग में प्रतिसेवना की है। कालविषयक प्रतिसेवना-सुभिक्ष काल में प्रतिसेवना कर कहे कि मैंने दुर्भिक्षवेला में प्रतिसेवना की है। __भावविषयक प्रतिसेवना-हृष्ट-स्वस्थ अवस्था में प्रतिसेवना कर कहे कि मैंने ग्लान अवस्था में प्रतिसेवना की है। १५१. कप्पम्मि वि पच्छित्तं, ववहारम्मि वि तमेव पच्छित्तं । कप्पव्ववहाराणं, को णु विसेसो त्ति चोदेति॥ शिष्य ने पूछा-भंते! कल्प में प्रायश्चित्त का कथन है और व्यवहार में उसी प्रकार प्रायश्चित्त का विधान है फिर कल्प और व्यवहार में क्या अंतर है? १५२. जो अवितहववहारी, सो नियमा वट्टते तु कप्पम्मि। इति वि हु नत्थि विसेसो, अज्झयणाणं दुवेण्हं पि।। जो अवितथ व्यवहारी होता है, वह नियमतः अवश्य ही कल्प-आचार में वर्तमान होता है। (कल्प, व्यवहार और आचार-तीनों एकार्थक हैं।) इस प्रकार अभिधेय और अभिधान की दृष्टि से भी कल्प और व्यवहार दोनों अध्ययनों (ग्रंथों) में कोई अंतर नहीं है। १५३. कप्पम्मि कप्पिया खलु, मूलगुणा चेव उत्तरगुणा य। ववहारे ववहरिया, पायच्छित्ताऽऽभवंते य॥ कल्पाध्ययन में मूलगुण और उत्तरगुण संबंधित अतिचारों के प्रायश्चित्त का निरूपण है तथा व्यवहाराध्ययन में प्रायश्चित्त की दानविधि (देने की प्रक्रिया) का वर्णन है। कल्पाध्ययन में आभवत् प्रायश्चित्त का तथा व्यवहाराध्ययन में उनकी दानविधि का निरूपण है। १५४. अविसेसियं च कप्पे, इहइं तु विसेसितं इमं चउधा। पडिसेवण संजोयण, आरोवण कुंचियं चेव।। कल्पाध्ययन अविशेषित प्रायश्चित्त का कथन है और व्यवहार में विशेषित प्रायश्चित्त का निरूपण है। जैसेप्रायश्चित्त के चार प्रकार हैं-प्रतिसेवना, संयोजना, आरोपणा और प्रतिकुंचना। १५५. नाणत्तं दिस्सए अत्थे, अभिन्ने वंजणम्मि वि। वंजणस्स य भेदम्मि, कोइ अत्थो न भिज्जति।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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