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________________ ४२८२-४२८४. ४२८५-४२९४. ४२९५-४३००. ४३०१. ४३०२-४३१०. ४३११-४३१५. ४३१६-४३१९. ४३२०-४३२३. ४३७१-४३७३. ४३७४-४३७६. ४३२४-४३३२. ४३३३,४३३४. ४३३५-४३३७. अनशनकर्त्ता के प्रति प्रतिचारकों का कर्त्तव्य । ४३३८-४३३४१. प्रतिचारक और प्रतिचर्य के महान् निर्जरा कब ? कैसे ? ४३४२-४४. अनशनकर्त्ता के लिए संस्तारक का स्वरूप । ४३४५,४३४६. अनशनकर्ता का उद्वर्तन विषयक विवेक । ४३४७-४३५९. अनशनकर्त्ता को समाधि उत्पन्न करने के उपाय । ४३६०-४३७०. अनशनकर्त्ता द्वारा आहार पानी मांगने पर प्रतिचारकों का कर्त्तव्य | अनशनकर्त्ता को आहार के बिना समाधि न होने पर आहार देने का निर्देश । कालगत अनशनकर्त्ता का चिडकरण, प्रकार और विधि । भक्तपरिज्ञा अनशन में व्याघात आने पर गीतार्थ द्वारा प्रयुक्त उपाय | व्याघातिम बालमरण के हेतु । इंगिनीमरण अनशन और पांच तुलाएं। भक्तपरिज्ञा और इंगिनीमरण में अन्तर । पादोपगमन (प्रायोपगमन) अनशन का स्वरूप और विधि । प्रायोपगमन अनशनकर्त्ता के भेदविज्ञान का चिन्तन । प्रायोपगमन अनशनकर्त्ता के मेरु की भांति अप्रकंपध्यान। प्रायोपगमन अनशनकर्त्ता की अर्हता । अनशनकर्ता के देव और मनुष्यों द्वारा अनुलोमप्रतिलोम द्रव्यों का मुख में प्रक्षेप और उसका ४३७१-४३८०. ४३८१-४३९०. ४३९१. ४३९२-४३९४. ४३९५-४३९८. ४३९९. ४०००. ४४०१. ४४०२,४४०३. Jain Education International (३५) गच्छ को पूछे बिना अनशन करने वाले आचार्य को प्रायश्चित्त तथा अनापृच्छा के दोष । अनशनकर्त्ता की गच्छ, आचार्य तथा अन्य मुनियों द्वारा परीक्षा, कोंकणक तथा अमात्य का दृष्टान्त | अनशनकर्ता की शोधि का उपाय-आलोचना । आलोचना के गुण । ज्ञान, दर्शन, चारित्र संबंधी अतिचारों की आलोचना । अनशनकर्त्ता के लिए प्रशस्तस्थान का निर्देश | अनशनकर्त्ता के लिए प्रशस्त वसति का निर्देश । अनशनकर्त्ता के लिए निर्यापकों के और गुण कर्त्तव्य | अनशनकर्त्ता को चरम आहार देने के गुण । चरमाहार में द्रव्य संख्या की परिहानि । ४४०४. ४४०५. ४४०६. ४४०७,४४०८. ४४१४-४४१६. ४४०९-४४१३. पुरुषद्वेषिणी विभिन्न गुणकलित राजकन्या द्वारा बत्तीस लक्षणधर अनशनी का ग्रहण तथा उसके द्वारा की जाने वाली चेष्टाएं। ४४१७,४४१८. ४४१९,४४२०, ४४२१,४४२२. ४४२३-४४२९. ४४३०,४४३१. ४४३२,४४३३. ४४३४,४४३५. ४४३६. ४४३७-४४३९. ४४४०-४४५८. ४४५९,४४६०. ४४६१-४४६७. विवरण | अनशनकर्त्ता का संहरण | अनशनकर्ता की फलश्रुति । अनशनकर्त्ता को अनुलोम उपसर्गों में सम रहने का निर्देश | ४४६८-४५०२. पूर्वभव के प्रेम से देवता द्वारा अनशनकर्ता का संहरण | अनशनी के अचलित होने पर उस कन्या द्वारा शिला प्रक्षेप तथा अनशनी के महान् निर्जरा । मुनि सुव्रतस्वामी के शिष्य स्कन्दक का वृत्तान्त | श्वापदों द्वारा खाए जाने पर तथा अग्नि से जलाए जाने पर भी पादपोपगत का अविवलन | चिलातिपुत्र की सहनशीलता के समान प्रायोपगमन अनशनकर्ता की सहनशीलता। प्रायोपगमन अनशनी के निष्प्रतिकर्म का कालायवेसी, अवंतीसुकुमाल आदि अनेक दृष्टान्तों से समर्थन | आचार्य • भद्रबाहु निर्यूढ पांच व्यवहारात्मक श्रुत। श्रुतव्यवहारी कौन? कल्प और व्यवहारी की नियुक्ति का ज्ञाता ही श्रुतव्यवहारी । कल्प और व्यवहार का निर्यूहण क्यों ? श्रुत व्यवहारी का स्वरूप | आज्ञाव्यवहारी का स्वरूप और विवरण । दुरस्थ आचार्य के पास आलोचना करने की विधि में आज्ञाव्यवहार का निर्देश तथा शिष्य की परीक्षाविधि। आलोचना के अठारह स्थान । दर्पप्रतिसेवना और कल्पप्रतिसेवना के विविध विकल्प | दर्प प्रतिसेवना और कल्पप्रतिसेवना के ३४ प्रकार की आलोचना का क्रम । धारणा के एकार्थक तथा उनके व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ । ४५०३-४५०६. ४५०७-४५११. धारणा व्यवहार किसके प्रति ? ४५१२-४५२०. ४५२१,४५२२. ४५२३. For Private & Personal Use Only धारणा व्यवहार प्रयोक्ता की विशेषताएं। जीत व्यवहार का स्वरूप । जीतव्यवहार कब से ? शिष्य का प्रश्न | www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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