SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवां उद्देशक ૨૨૭ २४००. तम्हा सपक्खकरणे, परिहरिता पुव्ववण्णिता दोसा॥ सज्जित हो गए। वह राजा संग्राम का पार पा गया, जीत गया। __ कप्पे छट्ठद्देसे, तह चेव इहं पि दट्ठव्वा॥ प्रतिपक्षी सेना विपर्यस्त हो गई, हार गई। इसलिए सपक्ष वैयावृत्त्य करने में जो पूर्ववर्णित दोष हैं २४०७. एमेवासणपेज्जाइं, खज्जलेज्झाणि जेसि उ। उनका कल्पाध्ययन के छठे उद्देशक में परिहार किया गया है। भेसज्जाइं सहीणाई, पारगा ते समाहिए। यहां भी वैसे ही जानना चाहिए। इसी प्रकार जिन आचार्यों के भैषज-अशन, पान, खाद्य २४०१. चोएती परकरणं, नेच्छामो. दोसपरिहरणहेतुं। और स्वाद्य स्वाधीन होते हैं वे गच्छ तथा स्व-समाधि के पारग किं पुण भेसज्जगणो, घेत्तव्व गिलाणरक्खट्ठा॥ होते हैं। (जो इनका संग्रह नहीं करते वे समाधि के अपारग होते शिष्य प्रश्न करता है-केवल दोषों का परिहार करने के हैं) निमित्त से परपक्ष का वैयावृत्त्य करना नहीं चाहते। तो फिर ग्लान २४०८. अधवा राया दुविधो आतभिसित्तो पराभिसित्तो य। की रक्षा के लिए औषधसमूह का ग्रहण क्यों? आतभिसित्तो भरहो, तस्स उ पुत्तो परेणं तु॥ २४०२. पुव्वं तु अगहितेहिं दूरातो ओसहाइ आणिंति। अथवा राजा दो प्रकार होते हैं-आत्माभिषिक्त और तावत्तो उ गिलाणो, दिर्सेतो दंडियादीहिं॥ पराभिषिक्त। राजा भरत आत्माभिषिक्त था और उसका पुत्र पहले यदि औषधसमूह का ग्रहण नहीं किया जाता है तो आदित्ययशा पराभिषिक्त। आर्या जब तक दूर से औषध नहीं ले आती तब तक ग्लान के २४०९. बलवाहणकोसा या, बुद्धी उम्पत्तियाइया। आगाढ़ आदि परितापना हो सकती है। यहां दंडिक आदि का साधगो उभयोवेतो, सेसा तिण्णि असाधगा।। दृष्टांत है राजा विषयक चार भंग होते हैं२४०३. उवट्टितम्मि संगामे, रणो बलसमागमो। १. एक राजा बल, वाहन और कोश से समग्र होता है, एगो वेज्जोत्थ वारेती, न तुब्भे जुद्धकोविया॥ बुद्धि से नहीं। २४०४. घेप्पंतु ओसधाई, वणपट्टा मक्खणाणि विविहाणि। २. एक राजा बल आदि से समग्र नहीं होता, बुद्धि से सो बेतऽमंगलाई, मा कुणह अणागतं चेव॥ समग्र होता है। संग्राम उपस्थित होने पर दोनों राजाओं की सेना का पड़ाव ३. एक राजा बल आदि से भी समग्र होता है और बुद्धि से हुआ। एक ओर के राजा के पास वैद्य आए और सेना के साथ भी समग्र होता है। उन्हें ले जाने का आग्रह किया। राजा ने उनका निषेध करते हुए ४. एक राजा न बल आदि से समग्र होता है और न बुद्धि कहा-तुम युद्धकोविद-युद्धकला के अजानकार हो। वैद्य बोले- से।। हम युद्धकोविद नहीं हैं किंतु हमारा उपयोग है। आप अपने साथ उपर्युक्त चार भंगों में तीसरा भंग अर्थात् जो राजा बल, अनेक प्रकार के औषध लें। व्रणपट्ट तथा विविधप्रकार के वाहन और कोश आदि से समृद्ध और औत्पत्तिकी आदि बुद्धि से म्रक्षण-मरहम आदि लें। ये सब घायल सैनिकों के काम में सम्पन्न होता है वह राज्य का साधक होता है। शेष तीन भंग वाले आएंगे। यह सुनकर राजा ने कहा-आप अनागत अमंगल की राजा राज्य के साधक नहीं होते। बात कहकर अमंगल न करें। आप चले जाएं। २४१०. बलवाहणत्थहीणो, बुद्धीहीणो न रक्खते रज्जं। २४०५. किं घेत्तव्वं रणे जोग्गं, पुच्छित्ता इतरेण ते। इय सुत्तत्थविहीणो, ओसहहीणो उ गच्छं. तु॥ भणंति वणतिल्लाई, घतदव्वोसहाणि य॥ जो राजा सेना, वाहन और कोष तथा बुद्धि से हीन होता है, दूसरे राजा ने अपने वैद्यों से पूछा-संग्राम के योग्य हमें वह राज्य की रक्षा नहीं कर पाता। इसी प्रकार जो आचार्य सूत्र साथ में क्या-क्या लेना है? वैद्यों ने तब व्रणरोहण के लिए और अर्थ से विहीन तथा औषधहीन होता है, वह गच्छ की रक्षा उपयोगी तैल, अतिजीर्ण घृत, द्रव्यौषध आदि के लिए कहा। नहीं कर सकता। राजा ने सारे पदार्थ ले लिए। २४११. आयपराभिसित्तेणं, तम्हा आयरिएण उ। २४०६. भग्गसिव्वित संसित्ता, वणा वेज्जेहि जस्स उ। ओसधमादीणि चओ, कातव्वो चोदए सिस्सो।। सो पारगो उ संगामे, पडिवक्खो विवज्जते।। शिष्य कहता है-इसलिए आत्माभिषिक्त तथा पराभिषिक्त जिस राजा के योद्धा प्रहार से पीड़ित हुए तथा जो बाणों आचार्य को चाहिए कि वे औषध आदि का संग्रहण करे। आदि से वणित हुए, वैद्यों ने उनके घावों को सीकर तथा प्रहारों २४१२. सीसेणाभिहिते एवं, बेति आयरिओ ततो। को औषधि से ठीक कर दिया। वे सभी योद्धा युद्ध के लिए पुनः वदतो गुरुगा तुब्भं, आणादीया विराधणा॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy