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________________ चौथा उद्देशक १९९ २. ग्लान आचार्य का होता है, विपरिणतों का नहीं। जो सुखदुःखित (सुखदुःखोपसंपन्नक) थे आचार्य ने ३. दोनों का होता है ग्लान। उनकी गवेषणा की। उनका वही अवग्रह है। वे शिष्य यदि ४. दोनों का नहीं होता ग्लान। विपरिणत हो जाते हैं, यदि विपरिणत नहीं भी होते, उन्होंने जो २०९५. आयरिय अपेसंते, लहुओ अकरेंत चउगुरू होति। उत्पादित किया है, वह उन्हीं को प्राप्त होता है, आचार्य को नहीं। परितावणादि दोसा, तेसि अप्पेसणे एवं। यदि आचार्य गवेषणा नहीं करते तो जो प्राप्त होता है वह आचार्य पहले भंग में ग्लान विपरिणतों का होता है, आचार्य का को नहीं, उन्हीं को मिलता है। नहीं। परंतु यदि आचार्य उसकी गणेषणा के लिए साधु-संघाटक २१००. विप्परिणतम्मि भावे, लद्धं अम्हेहि बेंति जइ पुट्ठा। को नहीं भेजते तो उनको लघुमास का प्रायश्चित्त आता है। यदि पच्छा पुणो वि जातो, लभंति दोच्चं अणुण्णवणा।। जानेवाले ग्लानकृत्य नहीं करते तो जाने वालों को चार गुरुमास यदि पूछने पर वे कहते हैं कि विपरिणतभाव में हमने यह का प्रायश्चित्त है तथा परितापना आदि में भी प्रायश्चित्त आता है। प्राप्त किया है, वह उन्हीं का होता है, आचार्य का नहीं। पश्चात् दूसरे भंग में ग्लान आचार्य का होता है, उनका नहीं। यदि पुनः भाव होने पर दूसरी बार अवग्रह की अनुज्ञापना करनी वे विपरिणत मुनि ग्लान की गवेषणा आदि नहीं करते तो पूर्वोक्त चाहिए। उसमें जो प्राप्त होता है वह आचार्य का है, उनका नहीं। सारा प्रायश्चित्त गम्य है। २१०१. आगतमणागताणं, उडुबद्धे सो विधी तु जा भणिता। २०९६. अहवा दोण्ह वि होज्जा, ___अद्धाणसीसगामे, एस विहीए ठिय विदेसं। संथरमाणेहि तह वि गविसणया। आगत-चरिका से निवृत्त तथा अनागत-चरिका में प्रविष्ट तं चेव य पच्छित्तं, मुनियों के लिए ऋतुबद्ध काल में पूर्वोक्त विधि है। प्रस्तुत विधि असंथरंता भवे सुद्धा॥ विदेश में जाने के इच्छुक अवशीर्षकग्राम-मार्गगत मध्यवर्ती तीसरे भंग में ग्लान दोनों का होता है। दोनों ग्लान की गांव में स्थित के लिए है। गवेषणा आदि करे। न करने पर पूर्ववत् प्रायश्चित्त। चतुर्थभंग में २१०२. सत्थेणं सालंब, गतागताण इह मग्गणा होति। ग्लान दोनों का नहीं होता। उस स्थिति में गवेषणा आदि न करने तत्थऽण्णत्थ गिलाणे, लहु-गुरु-लहुगा चरिम जाव।। पर भी दोनों शुद्ध हैं। __ जो सार्थ के साथ सालंब रूप में गए हैं अथवा नहीं गए हैं २०९७. हट्ठणं न गविट्ठा, उनके लिए आभव्य और अनाभव्य की मार्गणा होती है। इसमें अतरंत न ते य विप्परिणया उ। ग्लान विषयक चतुभंगी होती हैतत्थ वि न लभति सेहे, १. अन्यत्र अर्थात् अर्ध्वशीर्षकग्राम में स्थित का ग्लान लभति कज्जे विपरिणया वि॥ आभाव्य होता है, तत्र अर्थात् आचार्य के पास में स्थित का नहीं। हृष्ट होकर भी गवेषणा न करने पर तथा स्वयं असमर्थ होते २.आचर्य के पासवालों का होता है, उनका नहीं। हुए भी विपरिणत न होकर जो शैक्ष आदि उनको प्राप्त होता है, ३. दोनों के पासवालों का होता है। वह गुरु का नहीं होता। गुरु किसी कार्य में व्याकुल होने के कारण ४. दोनों के पासवालों का नहीं होता। उनकी गवेषणा नहीं की। दूसरे विपरिणत होकर जो कुछ सचित्त आचार्य यदि उनकी गवेषणा नहीं करते तो लघुमास, आदि प्राप्त करते हैं, वह उनको नहीं मिलता, किंतु वह आचार्य ग्लान का कृत्य न करने पर चार गुरुमास, परितापना आदि में को प्राप्त होता है। चार लघुमास से अंतिम पारांचित प्रायश्चित्त तक प्राप्त होता है। २०९८. लद्धं अविप्परिणते, कधेति भावम्मि विप्परिणयम्मि। २१०३. पुण्णे व अपुण्णे वा, विपरिणतेसु जा होतऽणुण्णवणा। इति मायाए गुरुगो, सच्चित्तादेसगुरुगा वा।। गुरुणा वि न कायव्वा, संकालद्धे विपरिणते उ।। अविपरिणतभाव में प्राप्तकर उसको विपरिणमित कर कहते (विदेश जाते समय आगमन की जितनी कालावधि का हैं-इसको हमने विपरिणतभाव में प्राप्त किया है। उनको संकेत किया था) उसके पूर्ण होने पर अथवा पूर्ण न होने पर यदि मायानिष्पन्न एक गुरुमास का प्रायश्चित्त आता है। सचित्त की वे विपरिणत हो गए हों तो आने पर अवग्रह की पुनः अनुज्ञापना प्राप्ति की हो तो चार गुरुमास तथा अन्य परम्परा के अनुसार करनी चाहिए। (यदि वे लौटकर कहें कि अवधि के पूर्ण होने पर उसका प्रायश्चित्त है-अनवस्थाप्य। शैक्ष की प्राप्ति हुई है तो) गुरु को उसमें शंका नहीं करनी चाहिए २०९९. सुहदुक्खिया गविठ्ठा, सो चेव या उग्गहो य सीसा य। कि अपूर्ण अवधि में प्राप्त शैक्ष के लोभ के वशीभूत होकर ये विप्परिणमंतु मा वा, अगविट्ठेसुं तु सो न लभे॥ विपरिणत हुए हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001944
Book TitleSanuwad Vyavharbhasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages492
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G005
File Size14 MB
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