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________________ 40 प्राकृत व्याकरण वधूः संस्कृत प्रथमान्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप वहू होता है। इसमें सूत्र - संख्या १- १८७ से 'धू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; ४-४४८ से संस्कृत प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि= (इ' की इत्संज्ञा होने से ) 'स्' की प्राप्ति और १ - ११ से प्राप्त अन्त्य हलन्त 'स्' का लोप होकर प्राकृत रूप 'वहू' सिद्ध हो जाता है।।३-२९।। नात आत् ||३-३०॥ स्त्रियां वर्तमानादादन्तान्नाम्नः परेषां टा ङस् ङि ङसोनामादादेशो न भवति ।। मालाअ। मालाइ । मालाए कयं सुठि आगओ वा ।। अर्थः- प्राकृत भाषा में अकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में तृतीया विभक्ति के एकवचन में; पंचमी विभक्ति के एकवचन में; षष्ठी विभक्ति के एकवचन में और सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा, ङसि, ङस् और डि' के स्थान पर सूत्र - संख्या ३ - २९ से जो क्रमिक चार आदेश प्राप्त प्रत्यय 'अ आ इ और ए' प्राप्त होते हैं; उनमें से "आ" प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होती है । किन्तु तीन प्रत्ययों की ही प्राप्ति होती है जो कि इस प्रकार हैं :-" अ- इ और ए । सारांश यह है कि आकारान्त स्त्रीलिंग में 'आ' प्रत्यय नहीं होता है जैसे:- क्रमिक उदाहरणः- तृतीया विभक्ति के एकवचन में:- मालया कृतम् = मालाअ, मालाइ और मालाए कयं; पंचमी विभक्ति के एकवचन में:- मालायाः आगतः-मालाअ, मालाइ और मालाए आगओ । वैकल्पिक पक्ष होने से मालत्तो, मालाओ, मालाउ और मालाहिंतो आगओ भी होते हैं। षष्ठी विभक्ति के एकवचन में:- मालाया सुखं मालाअ, मालाइ और मालाए सुहं । सप्तमी विभक्ति के एकवचन मेंमालायाम् स्थितम्=मालाअ, मालाइ, मालाए ठिअं। इस प्रकार से सभी आकारान्त स्त्रीलिंग रूपों में ' अ - इ - ए' प्रत्ययों की ही प्राप्ति जानना और 'आ' प्रत्यय का निषेध समझना । मालया मालायाः मालायाः मालायाम् संस्कृत क्रमिक तृतीयान्त पञ्चम्यन्त षष्ठ्यन्त और सप्तम्यन्त एकवचन रूप हैं। इन सभी के स्थान पर प्राकृत में एकरूपता वाले ये तीन रूप 'मालाअ मालाइ और मालाए' होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ३ - २९ से संस्कृत क्रमिक प्रत्यय-' टा ङसि ङस् ङि' के स्थान पर आदेश रूप ' अ आ इ और ए' प्रत्ययों की क्रमिक प्राप्ति और ३-३० से 'आ' प्रत्यय की निषेध अवस्था प्राप्त होकर क्रमिक तीनों रूप 'मालाअ मालाइ और मालाएं उपर्युक्त सभी विभक्तिों के एकवचन में सिद्ध हो जाते हैं। 'कय' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १२६ में की गई है। 'सुह' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - २६ में की गई है। 'आगओ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - २०९ में की गई है। 'ठिअ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - १६ में की गई है। 'वा' (अव्यय) रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६७ में की गई है । । ३ - ३० ।। प्रत्यये ङीर्न वा ||३-३१।। अणादि सूत्रेण- ( है २-४) प्रत्ययनिमित्तो यो ङीरुक्तः स स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नोः वा भवति ।। साहणी । कुरुचरी । पक्षे। आत्- ( है २-४) इत्याप् । साहणा ।। करूचरा ।। अर्थः- प्राकृत भाषा में पुल्लिंग अथवा नपुंसकलिंग वाले शब्दों को नियमानुसार स्त्रीलिंग में परिवर्तन करने के लिए हैमचन्द्र व्याकरण के सूत्र - संख्या २-८४ से संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङी=ई' स्थान पर (प्राकृत में) 'ई' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होती है। जैसे:- (साधन + ई = ) साधनी - साहण अथवा वैकल्पिक पक्ष होने से साहणा । ( कुरूचर + ई =) कुरुचरी = कुरुचरी अथवा वैकल्पिक पक्ष होने से कुरुचरा । इन उदाहरणों में 'स्त्रीलिंग-प्रत्यय' रूप से दीर्घ ' और 'आ' को क्रमिक रूप से प्राप्ति हुई है। अतः इस सूत्र में यह सिद्धान्त निश्चित किया गया है। प्राकृत भाषा में 'स्त्रीलिंग रूप' निर्माण करने में नित्य 'ई' की ही प्राप्ति नहीं होती है, किन्तु 'आ' की प्राप्ति भी हुआ करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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