________________
प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 371
तहिं मयर-द्धय-दडवडउ, पडइ अपूरइ कालि।।१४।। यदेष्छुडुः।। छुडु अग्घइ ववसाउ।। सम्बन्धितः केर-तणौ।१५।। गयउ सु केसरि पिअहु जलु निच्चिन्तई हरिणाइ।। जसु केरएं हुंकारडएं मुहहु पडन्ति तृणाइ।।१५।। अह भग्गा अम्हहं तणा।। मा भैषीरित्यस्य मब्भीसेति स्त्रीलिंगम्।। सत्थावत्थहं आलवणु साहु वि लोउ करेइ।। आदन्नहं भब्भीसडी जो सज्जणु सो देइ।।१६।। यद्-यद् दृष्टं तत्तदित्यस्य जाइ टुिआ।। जइ रच्चसि जाइटुिअए हिअडा मुद्ध-सहाव।। लोहें फुटणएण जिवँ घणा सहेसइ ताव।।१७।।
अर्थः-संस्कृत भाषा में पाये जाने वाले अनेक शब्दों के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में ऐसे ऐसे शब्दों की आदेश प्राप्ति देखी जाती है जो कि मूलतः देशज भाषाओं के और प्रान्तीय बोलियों के शब्द है। तदनुसार इस सूत्र में ऐसे इक्कीस शब्दों की आदेश-प्राप्ति बतलाई है जो कि मूलतः देशज होते हुए भी अपभ्रंश-भाषा में प्रयुक्त होते हुए पाये जाते हैं। हिन्दी-अर्थ बतलाते हुए संस्कृत भाषान्तर पूर्वक इनकी स्थिति क्रम से इस प्रकार है:
(१) शीघ्रम-वहिल्ल-जल्दी, (२) झकट-धंधल-झगड़ा, कलह। (३) अस्पृश्य-संसर्ग-विट्टाल नहीं छूने लायक वस्तु के साथ अथवा पुरूष के साथ की संगति जाना, अपवित्रता होना। (४) भय-द्रवक्क= भय, डर, भीति। (५) आत्मीय-अप्पण-खुद का। (६) दृष्टि देहि नजर, दृष्टि। (७) गाढ=निच्चट्ट-गाढ़, मजबूत, निविड, सघन। (८) साधारण सढ्ढल साधारण, मामुली, सर्व सामान्य। (९) कौतुक-कोड्ड आश्चर्य, कौतुल, कुतूहल, आश्चर्यमय खेल। (१०)क्रीड़ा-खेड्ड-खेल। (११)रम्य-रवण्ण-सुन्दर, मन को मोहित करने वाला। (१२)अद्भुत ढक्करि अनोखा, आश्चर्य-जनक। (१३)हे सखि हे हेल्लि हे दारिका हे सहेली। (१४)पृथक्-पृथक-जुअंजुअ-अलग अलग। (१५)मूढ=नालिअ तथा वढ-मूर्ख, बेवकूफ अज्ञानी। (१६)नव-नवख-नया ही, अनोखा ही। (१७) अवस्कन्द-दडवड-शीघ्र, जल्दी, शीघ्रता पूर्वक दबाव का पड़ना। (१८) यदि छुडु-यदि, जो शीघ्र, तुरन्त। (१९) सम्बन्धी-केर और तण-सम्बन्ध वाला, सम्बन्धी चीज़; जिसके कारण से। (२०) मा भैषीः भब्भीसा मत डर, अभय वचन।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org