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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 327
भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि महारा कन्तु।। लज्जेज्जन्तु वयंसिअहु जइ भग्गा घरू एन्तु।।१।। वयास्याभ्यो वयस्यानाम् वेत्यर्थः।। .
अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग वाले शब्दों में पंचमी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'भ्यस्' के स्थान पर 'हु' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर 'हु' की आदेश प्राप्ति (विकल्प से) जानना चाहिये। सूत्र-संख्या ४-३४५ से प्राप्त प्रत्यय 'हु का प्रायः लोप हो जाया करता है। इस संविधान के अतिरिक्त यह भी विशेषता है कि इस प्राप्त प्रत्यय 'हु' में अथवा 'लोप-विधान' के पर्व स्त्रीलिंग शब्दों में रहे हए अन्त्य स्वर को विकल्प से हस्व से दीर्घत्व की और दीर्घ से हस्वत्व की प्राप्ति भी होती है। यों पंचमी विभक्ति के बहुवचन में स्त्रीलिंग शब्दों में दो रूप होते हैं और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में चार चार रूप हो जाते हैं। उदाहरण के रूप में गाथा में जो पद 'वयसि अहु' दिया गया है; उसको पंचमी और षष्ठी के बहुवचन में दोनों में गिना जा सकता है। जैसा कि:- वयस्याभ्यः अथवा वयस्यानाम् वयंसिअहु-मित्रों से अथवा मित्रों के बीच में पूरी गाथा का संस्कृत हिन्दी रूपान्तर यों है:संस्कृत : भव्यं भूतं यन्मारितः भगिनि ! अस्मदीयः कान्तः।
अलज्जिष्यत् वयस्याभ्यः यदि भग्नः गृहं ऐष्यत्।। अर्थः- हे बहिन ! यह बड़ा अच्छा हुआ कि मेरे पति (युद्व में युद्ध करते-करते) मारे गये। यदि वे हार कर (अथवा कायर बन कर) घर पर आ जाते तो मित्रों से (अथवा मित्रों के बीच में) लज्जित किये जाते। (उनकी हँसी उड़ाई जाती)।।४-३५१।।
हि॥४-३५२।। अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमनानाम्नः परस्य डेः सप्तम्येकवचनस्य हि इत्यादेशो भवति।। वायस उडावन्तिअए पिउ दिट्रिउ सहस ति।। अद्धा वलया महि हि गय अद्धा फुट्ट तड त्ति।।१।।
अर्थः- अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग शब्दों में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'डि' के स्थान पर 'हि' प्रत्यय रूप की आदेश प्राप्ति होती है। प्राप्त प्रत्यय 'हि' की संयोजना करने के पूर्व स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त्य स्वर की विकल्प से 'हस्वत्व से दीर्घत्व'की और 'दीर्घत्व से हस्वत्व' की प्राप्ति हो जाती है। इस प्रकार से अपभ्रंश भाषा में सभी स्त्रीलिंगवाचक शब्दों के सप्तमी विभक्ति के एकवचन में दो-दो रूप हो जाते है। जैसे:- महिहि, महीहि-पृथ्वी पर। धेणुहि, धेणूहि धेणूहि=गाय पर-गाय में। मालडिआहि, मालाडिअहि-माला में-माला पर। गाथा का अनुवाद यों हैं :संस्कृत : वायसं उड्डापयन्त्या प्रियो दृष्टः सहसेति।।
अर्धानि वलयानि मह्यां गतानि, अर्धानि स्फुटितानि तटिति।। हिन्दी:-शकुन शास्त्र में मकान के मुंडेर पर बैठकर कौए द्वारा 'काँव-काँव' किये जाने वाले शब्द से किसी के भी आगमन की सूचना मानी जाती है तदनुसार किसी एक स्त्री द्वारा कौए की काँव-काँव वाचक ध्वनि को सुनकर उसको उड़ाने के लिये ज्यों ही प्रयत्न किया गया तो अचानक ही उसको अपने प्रिय पति विदेश से घर आते हुए दिखलाई पड़े। इससे उस स्त्री को हर्ष मिश्रित रोमाञ्च हो आया और ऐसा होने पर उसके हाथ में पहिनी हुई चूड़ियाँ में से आधी तो धरती पर गिर पड़ी और आधी 'तड़ाक' ऐसे शब्द करते ही तड़क गई।।४-३५२ ।।
क्लीबे जस्-शसोरि।।४-३५३॥ अपभ्रंशे क्लीबे वर्तमानानाम्नः परयो र्जस्-शसोः इं इत्यादेशौ भवति॥
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