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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 307
र पैशाची.
होगा। सूत्र-सम्बन्धित अन्य उदाहरण इस प्रकार है:- (१) भगवती भगवती-देवता विशेष; ऐश्वर्य शालिनी। (२) पार्वती पव्वती-महादेवजी की पत्नी; पर्वत-पुत्री। (३) शतं-सत-सौ की संख्या।। 'द' से सम्बन्धित उदाहरण यों है:- (१) मदन-परवशः मतन-परवसो-कामदेव के वश में पड़ा हुआ। (२) सदनम् सतनं मकान, घर। (३) दामोदरः तामोतरो= श्रीकृष्ण वासुदेव का एक नाम। (४) प्रदेश: पतेसो = देश का एक भाग, प्रान्त-विशेष। (५) वदनकम्-वतनक-मुख। (६) भवतु (होदु)-होतु-होवे। (७) रमताम्= (रमदु)-रमतु-वह खेले।।४-३०७।।
लो लः॥४-३०८॥ पैशाच्या लकार स्य लकारो भवति।। सीलं कुलं जलं।। सलिलं।। कमलं।।
अर्थः-संस्कृत-भाषा के शब्दों में रहे हुए 'लकार' वर्ण के स्थान पर पैशाची-भाषा में 'लकार' वर्ण की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- (१) शीलम-सील-शील धर्म, मर्यादा। (२) कुलम्=कुलं-कुल अथवा कुटुंब। (३) जलम् जलं पानी। (४) सलिलम्-सलिलं जल अथवा क्रीड़ा-पुर्वक। (५) कमलम्=कमलं कमल पद्म।।४-३०८।।
श-षोः सः॥४-३०९॥ पैशाच्यां शषोः सो भवति।। श। सोभति। सोभन॥ स सी। सक्को। संखो। प। विसमो। विसानो।। नकगचजादिषट्-शम्यन्त सूत्राक्तम् (४-३२४) इत्यस्य बाधकस्य बाध-नार्थोयं योगः।। ___ अर्थः-संस्कृत-भाषा के शब्दों में रहे हुए 'शकार' और 'षकार' वर्ण के स्थान पर पैशाची-भाषा में 'सकार' वर्ण की आदेश-प्राप्ति होती है। 'श' के उदाहरणः- (१) शोभाति (अथवा शोभते) सोभति-वह शोभा पाता है, वह प्रकाशित होता है। (२) शोभनं-सोमनं शोभा स्वरूप।। (३) शशिः=ससी चन्द्रमा। (४) शक्र:=सक्को-इन्द्र। (५) शंखः संखो-शंख।। 'ष' के उदाहरण :- (१) विषमः=विसमो-जो बराबर नहीं हो; जो अव्यवस्थित हो। (२) विषाणः-विसानो-सींग।। इस अन्तिम उदाहरण में _ "विषाण' में स्थित 'णकार' वर्ण के स्थान प
-भाषा में 'नकार' वर्ण की आदेश-प्राप्ति की जाकर 'णकार' की अभाव-सचक जो स्थिति प्रदर्शित की गई का रहस्य वृत्ति में सूत्र-संख्या ४-३२४ को उद्धृत करके समझाया गया है। जिसका तात्पर्य यह कि सूत्र-संख्या १-१७७ से प्रारम्भ करके सूत्र-संख्या १-२६५ तक का संविधान पैशाची-भाषा में लागू नहीं पड़ता है। इसका विशेष स्पष्टीकरण आगे सूत्र-संख्या-४-३२४ में किया जाने वाले है। तदनुसार ‘णकार' के स्थान पर 'नकार' की स्थिति को जानना चाहिये।। यों यह सूत्र बाधक स्वरूप है और इस प्रकार यह इस बाधा को उपस्थित करता है।।४-३०९।।
हृदये यस्य पः॥४-३१०।। पैशाच्या हृदय-षब्दे यस्य पो भवति।। हितपक।। किं पि किं पि हितपके अत्थं चिन्तयमानी।।
अर्थः-संस्कृत-भाषा के शब्द 'हृदय' में अवस्थित 'यकार वर्ण के स्थान पर पैशाची-भाषा में 'पकार' की आदेश-प्राप्ति हो जाती है । जैसे:- हृदयकम् हितपक-हदय:दिल।। किमपि किमपि हृदयके अर्थम् चिन्तयमाणी किं पि किं पि हितपके अत्थं चिन्तयमानी हृदय में कुछ भी कुछ भी (अस्पष्ट-सा) अर्थ को सोचती हुई।। यों 'य' का 'प' हुआ है।।४-३१०।।
. टोस्तुर्वा॥४-३११।। पैशाच्यां टोः स्थाने तुर्वा भवति॥ कुतुम्बक।। कुटुम्बक।।
अर्थः-संस्कृत-भाषा के शब्दों में रहे हुए 'टकार' वर्ण के स्थान पर पैशाची-भाषा में 'तु' वर्ण की विकल्प से आदेश-प्राप्ति होती है। जैसेः- कुटुम्बकम्=कुतुम्बकं अथवा कुटुम्बकं-कुटुम्ब वाला।।४-३११ ।।
क्त्व स्तूनः।।४-३१२॥ पैशाच्यां क्त्वा प्रत्ययस्य स्थाने तून इत्यादेशो भवति।। गन्तून। रन्तून। हसितून। पठितून। कधितून॥
अर्थः-संस्कृत-भाषा में सम्बन्ध-अर्थक-कृदन्त बनाने के लिये धातुओं में जैसे 'क्त्वा' प्रत्यय की प्राप्ति होती Jain Education International For Private & Personal Use Only
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