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________________ 266 : प्राकृत व्याकरण भी विकल्प से पाई जाती है । यों उपर्युक्त आदेश प्राप्त छह धातुओं के स्थान पर सात धातु रूप समझे जाने चाहिये। वैकल्पिक पक्ष होने से 'उल्लस' भी होता है। आठों ही धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- उल्लसति = (१) ऊसलइ, (२) ऊसुम्भइ, (३) णिल्लसइ, (४) पुलआअइ, (५) गुंजोल्लइ, (६) गुंजुल्लइ, (७) आरोअइ और (८) उल्लसइ=वह उल्लसित होता है, अथवा वह आनंदित होता है, वह तेज- युक्त होता है । । ४ - २०२ ।। भासेर्भिसः।।४-२०३।। भासेर्भिस इत्यादेशौ वा भवति ।। भिसइ । भासइ || अर्थः- 'प्रकाशमान होना, चमकना' अर्थक संस्कृत धातु 'भास्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'भिस्' धातु- रूप की प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में संस्कृत - धातु 'भास्' का प्राकृत रूपान्तर 'भसं' भी होता है । जैसे:- भासते - भिसइ अथवा भासइ = वह प्रकाशमान होता है अथवा चमकता है ।।४ - २०३ ।। ग्रसेर्घिसः ।।४-२०४॥ सेर्धिस इत्यादेशो वा भवति ।। घिस । गसइ || अर्थः- 'ग्रसना, निगलना, भक्षण करना' अर्थक संस्कृत धातु 'ग्रस' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'घिस' धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'गस' भी होता है। जैसे:- ग्रसति-घिसइ अथवा गसइ = वह ग्रसता है, वह निगलता अथवा वह भक्षण करता है ।।४-२०४ ।। अवाद्गाहेर्वाहः ४-२०५।। अवात् परस्य गाहेर्वाह इत्यादेशौ वा भवति । ओवाहइ । ओगाह । अर्थः- 'अव' उपसर्ग के साथ में रही हुई संस्कृत धातु 'गाह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'विकल्प से 'वाह' धातु रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'गाह' भी होता है। उपर्युक्त संस्कृत उपसर्ग 'अव' का प्राकृत रूपान्तर दोनों धातु-रूपों में 'ओ' हो जाता है, यह ध्यान में रखा जाना चाहिये। दोनों धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- अवगाहयति = ओवाहइ अथवा ओगाहइ=वह सम्यक प्रकार से ग्रहण करता है, वह अच्छी तरह से हृदयंगम करता है । । ४ - २०५ ।। आरुहेश्चड-वलग्गौ।।४–२०६।। आरूहेरेतावादेशौ वा भवतः । चडइ । वलग्गइ। आरूहइ।। अर्थः- 'आरोहण करना, चढ़ना, अर्थक संस्कृत - धातु 'आ+रुह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'चड और वलग्ग' ऐसे दो धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में संस्कृत - धातु 'आरूह' का प्राकृत-रूपान्तर ‘आरुह' भी होता है। जैसे - आरोहति = (१) चडइ, (२) वलग्गइ और (३) आरूहइ = वह आरोहण करता है अथवा वह चढ़ता है ।।४ - २०६ ॥ मुहेर्गुम्म - गुम्मडौ । । ४ -२०७।। मुहेरेतावादेशौ वा भवतः । गुम्मइ । गुम्मडइ । मुज्झइ ॥ अर्थः- 'मुग्ध होना अथवा मोहित होना' अर्थक संस्कृत धातु 'मुह' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'विकल्प से 'चड और गुम्मड' ऐसे दो धातु-रूपों की आदेशप्राप्ति होती हैं। वैकल्पिक पक्ष होने से 'मुज्झ' भी होता है। तीनों धातु - रूपों के उदाहरण इस प्रकार हैं:- मुह्यति = (१) गुम्मइ, (२) गुम्मडइ, और (३) मुज्झइ = वह मुग्ध होता है अथवा वह मोहित होता है ।।४-२०७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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