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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 257 अर्थः- “विश्राम करना, थकने पर आराम करना' अर्थक संस्कृत धातु 'वि+श्रम् विश्राम्य' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'णिव्वा' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'विसम' भी होता है। जैसे:- विश्राम्यति= णिव्वाइ अथवा वीसमइ वह विश्राम करता है ।। ४-१५९।। आक्रमेरोहावोत्थार च्छुन्दाः ।। ४-१६०॥ आक्रमतेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति । ओहावइ। उत्थारइ। छुन्दइ। अक्कमइ।। अर्थः- 'आक्रमण करना, हमला करना अर्थक संस्कृत धातु 'आक्रम' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से तीन (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) ओहाव, (२) उत्थार, और (३) छुन्द। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अक्कम' भी होता है। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- आक्रमते = (१) ओहावइ, (२) उत्थारइ, (३) छुन्दइ। पक्षान्तर में अक्कमइवह आक्रमण करता है वह हमला करता है ।। ४-१६०।। भ्रमेष्टिरिटिल्ल-ढुंदल्ल-ढंढल्ल-चक्कम्म-भम्मड-भमड-भमाडतलअंट-झंट-झम्प-भुम-गुम-फुम-फुस-दुम-दुस-परी-पराः।। ४-१६१।। भ्रमेरेतेष्टादशादेशा वा भवन्ति।। टिरिटिल्लइ। दुन्दुल्लइ। ढढल्लइ। चक्कम्मइ। भम्मडइ। भमडइ। भमाडइ। तलअंटइ। झंटइ। झंपइ। भुमइ। गुमइ। फुमइ। फुसइ। दुमइ। दुसइ। परीइ। परइ। भमइ।। ___ अर्थ- 'घुमना, फिरना' अर्थक संस्कृत-धातु 'भ्रम' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से अठारह (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) टिरिटिल्ल, (२) दुन्दुल्ल, (३) ढंढल्ल, (४) चक्कम्म, (५) भम्मड, (६) भमड, (७) भमाड, (८) तलअंट, (९) झंट, (१०) झंप, (११) भुम, (१२) गुम, (१३) फुम, (१४) फुस, (१५) ढुम, (१६) दुस, (१७) परी और (१८) पर। वैकल्पिक पक्ष होने से 'भम' भी होता है। उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- भ्रमति= (१) टिरिटिल्लइ, (२) ढुंढुल्लइ, (३) ढंदल्लइ, (४) चक्कम्मइ, (५) भम्भडइ, (६) भमडइ, (७) भमाडइ, (८) तलअंटइ, (९) झंटइ, (१०) झंपइ, (११) भुमइ, (१२) गुमइ, (१३) फुमइ, (१४) फुसइ, (१५) ढुमइ, (१६) दुसइ (१७) परीइ, (१८) परइ, पक्षान्तर में भमइ- वह घूमती है, वह फिरता है।।४-१६१।। गमेरइ-अइच्छाणुवज्जावज्जसोक्कुस-पच्चड्ड-पच्छन्दणिम्महणी-णणणोलुक्क-पदअ-रम्भ-परिअल्ल-वोल-परिअल णिरिणास णिवहावसेहावहरा ।। ४-१६२।। गमेरेते एकविंशतिरादेशा वा भवन्ति।। अईइ। अइच्छइ। अणुवज्जइ। अवज्जसइ। उक्कुसइ। अक्कुसइ। पच्चड्डइ। पच्छन्दइ। णिम्महइ। णीइ। णीणइ। णीलुक्कइ। पदअइ। रम्मइ। पणीअल्लइ। वोलइ। परिअलइ। णिरिणासइ। णिवहइ। अवसेहइ। अवहरइ। पक्षे। गच्छइ। हम्मइ। णिहम्मइ। णीहम्मइ। आहम्मइ। पहम्मइ। इत्येते तु हम्म गतावित्यस्यैव भविष्यन्ति।। अर्थः- 'गमन करना, जाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'गम् गच्छ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में इक्कीस (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) अई, (२) अइच्छ, (३) अणुवज्ज, (४) अवज्जस, (५) उक्कुस, (६) अक्कुस, (७) पच्चड्ड, (८) पच्छन्द, (९) णिम्मह, (१०) णी, (११) णीण, (१२) णीलुक्क, (१३) पदअ, (१४) रम्भ, (१५) परीअल्ल, (१६) वोल, (१७) परीअल, (१८) णिरिणास, (१९) णिवह, (२०) अवसेह, और (२१) अवहर। वैकल्पिक पक्ष होने से 'गच्छ' भी होता है। उक्त बावीस प्रकार के धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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