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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 241 इसी प्रकार से अवलम्बन करना अथवा सहारा लेना' इस अर्थक संस्कृत-धातु 'अवष्टम्भपूर्वक कृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'संदाण' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे- अवष्टम्भं करोति-संदाणइ-वह अवलम्बन करता है अथवा वह सहारा लेता है। ___पक्षान्तर में निष्टम्भं करोति का प्राकृत रूपान्तर 'निट्ठभं करेइ' ऐसा भी होगा; तथा 'अघष्टम्भं करोति' का प्राकृत रूपान्तर ओट्ठभं करेइ' भी होगा। ४-६७।।
श्रमे वावम्फः ॥४-६८॥ श्रमविषयस्य कृगो वावम्फ इत्यादेशो वा भवति।। वावम्फइ। श्रमं करोति।।
अर्थः- श्रम विषयक 'कृ' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'वावम्फ' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे- श्रमं करोति वावम्फइ-वह परिश्रम करता है। पक्षान्तर में श्रमं करोति' का 'समं करेइ' भी होगा ।। ४-६८।।
मन्युनौष्ठमालिन्ये णिव्वोलः ॥४-६९।। मन्युना करणेन यदोष्ठमालिन्यं तद्विषयस्य कृगो णिव्वोल इत्यादेशो वा भवति। णिव्वोलइ। मन्युना ओष्ठं मलिनं करोति। __ अर्थः-'क्रोध के कारण से होठ को मलिन करने' विषयक संस्कृत धातु 'कृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'णिव्वोल' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे- 'मन्युना ओष्ठं मलिनं करोति' =णिव्वोलइ-वह क्रोध से होठ को मलिन करती है अथवा करता है। पक्षान्तर में 'मन्नुणा ओळं मलिणं करेइ' भी होगा।।४-६९।।
शैथिल्यलम्बने पयल्लः ॥४-७०॥ शैथिल्य विषयस्य लम्बन विषयस्य च कृगः पयल्लः इत्यादेशो वा भवति। पयल्लइ। शिथिली भवति, लम्बते वा।।
अर्थः- 'शिथिलता करना' अथवा "ढीला होना- लटकना" इस विषयक संस्कृत धातु 'कृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'पयल्ल' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-शिथिलीभवति (अथवा) लम्बते पयल्लइ वह शिथिलता करता है अथवा वह ढिलाई करता है- वह ढीला होता है। पक्षान्तर में सिढिलई अथवा लम्बेइ होगा ।। ४-७०।।
निष्पाताच्छोटे णीलुञ्छः ।।४-७१।। निष्पतनविषयस्य आच्छोटनविषयस्य च कृगो णीलुच्छ इत्यादेशो भवति वा ॥ णीलुञ्छइ। निष्पतति। आच्छोटयति वा॥
अर्थः- "गिरने अथवा कूदने विषयक संस्कृत धातु 'कृ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'णीलुञ्छ' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-निष्पतति=णीलुञ्छइ-वह गिरता है और आच्छोटयति=णीलुञ्छइ-वह कूदता है। पक्षान्तर में णिप्पडइ और आछोडइ भी होगा ।। ४-७१।।
क्षुरे कम्मः ।।४-७२।। क्षुर विषयस्य कृगः कम्म इत्यादेशो वा भवति।। कम्मइ। क्षुरं करोतीत्यर्थः।।
अर्थः- 'हजामत करने' अर्थक 'कृ' धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'कम्म' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे-क्षुरं करोति-कम्मइ-वह हजामत कराता है। पक्षान्तर में 'खुरं करेइ ऐसा भी होगा ॥ ४-७२।।
चाटौ गुललः ॥४-७३॥ चाटु विषयस्य कृगा गुलल इत्यादेशो वा भवति।। गुललइ। चाटु करोतीत्यर्थः।।
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