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XXVI : हेम प्राकृत व्याकरण छः।।४-२१५॥ छिदि-भिदो न्दः।। ४-२१६।। युध-बुध-गृध-क्रुध-सिध-मुहांज्झः ।। ४-२१७।। रुधोन्ध-म्भौ च ॥ ४-२१८।। सद-पतोर्डः।। ४-२१९।। क्वथ-वर्धा ढः ।। ४-२२०।। वेष्टः।। ४-२२१।। समोल्लः ।। ४- २२२।। वोदः।। ४-२२३।। स्विदां ज्जः।। ४-२२४।। व्रज-नृत-मदांच्चः ।। ४-२२५।। रूद-नमोर्वः।। ४-२२६ ।। उद्विजः ४-२२७।। खाद-धावो लुंक।। ४-२२८।। सृजोरः।। ४-२२९।। शकादीनां द्वित्वम् ॥४-२३०।। स्फुटि-चलेः।।४-२३१।। प्रादेर्मीलेः।। ४-२३२।। उवर्णास्यावः ४-२३३।। ऋवर्णास्यारः ४-२३४।। वृषादीनामरिः।। ४-२३५ ।। रुषादीनां दीर्घः।। ४-२३६।। युवर्णस्य गुणः।। ४-२३७|| स्वराणां स्वरः।। ४-२३८|| व्यञ्जनाददन्ते।। ४-२३९।। स्वरादनतो वा।। ४-२४०।। चि-जि-श्रृ-हु-स्तु-लू-पू-धूगां णो हस्वश्च।। ४-२४१।। नवा कर्म-भावे व्व क्यस्य च लुक्।। ४-२४२।। म्मश्चेः।। ४- २४३।। हन्खनोन्त्यस्य ।। ४-२४४।। ब्भो दुह-लिह-वह-रूधामुच्चातः ।। ४-२४५।। दहो ज्झः।। ४-२४६।। बन्धो न्धः।। ४-२४७।। समनूपादूधेः।।४-२४८।। गमादीनां द्वित्वम्।।४-२४९।। ह-कृ-तृ-जामीरः ।। ४-२५०।। अर्जेर्विढप्पः।। ४-२५१।। ज्ञो णव्व-णज्जौ।। ४-२५२।। व्याहगेर्वाहिप्पः।। ४-२५३।। आरभेराढप्पः।। ४-२५४॥ स्निह-सिचोः सिप्पः।। ४-२५५।। ग्रहेर्घप्पः।। ४-२५६।। स्पृशे रिछप्पः।। ४-२५७।। क्तेनाप्फण्णादयः।। ४-२५८|| धातवोर्थान्तरेपि।। ४-२५९।। तो दोना दो शौरसेन्यामयुक्तस्य।। ४-२६०।। अधः क्वचित्।। ४-२६१।। वादेस्तावति।। ४-२६२।। आ आमन्त्र्ये सौ वेनो नंः।। ४-२६३।। मो वा ।। ४-२६४।। भवद्भगवतोः।। ४-२६५।। न वा र्यो य्यः।। ४-२६६।। थो धः।। ४-२६७।। इह-हचोर्हस्य।। ४-२६८।। भुवो भः।। ४-२६९।। पूर्वस्य पुरवः ४-२७०।। क्त्व इय-दणौ।। ४-२७१।। क-गमो डडअः।। ४-२७२।। दि रिचे चोः।। ४-२७३।। अतो देश्च।।४-२७४|| भविष्यति स्सि: ॥४-२७५।। अतो उसे र्डा दो-डा दू।। ४-२७६ ।। इदानीमो दाणि।। ४-२७७|| तस्मात्ताः।। ४-२७८|| मोन्त्ययाण्णो वेदे तोः ।। ४-२७९।। एवार्थ य्ये व।। ४-२८०।। हजे चेट्याह्वाने।। ४-२८१।। हीमाणहे विस्मय-निर्वेदे।। ४-२८२।। णं नन्वर्थ।। ४-२८३॥ अम्महे हर्षे।। ४-२८४॥ ही ही विदूषकस्य।। ४-२८५|| शेषं प्राकृतवत् ।।४-२८६।। इति शौरसेनी-भाषा-वितरण समाप्त अत एत् सौ पुसि मागध्याम्।। ४-२८७।। र-सोर्ल-शौ।। ४-२८८।। स-षोः संयोगे सोग्रीष्मे।।४-२८९।।ट्ट-ष्ठयोस्टः।। ४-२९०।। स्थ-र्थयोस्तः।। ४-२९१।। ज-द्य-यां-यः।। ४-२९२।। न्य-ण्य-ज्ञ जांबः ।। ४-२९३।। व्रजो जः।। ४-२९४।। छस्य शचोनादौ।। ४-२९५।। क्षस्य.कः।। ४-२९६।। स्कः प्रेक्षाचक्षोः।। ४-२९७।। तिष्ठ श्चिष्ठः।। ४-२९८|| अवर्णाद्वा ङसो डाहः ॥४-२९९॥ आमो डाहँ वा ।। ४-३००।। अहं वयमोर्हगे॥ ४-३०१।। शेषं शौरसेनीवत्।। ४-३०२।। ज्ञोबः पैषाच्याम्।। ४-३०३॥ राज्ञो वा चिम्॥४-३०४।। न्य-णयोः ।। ४-३०५।। णो नः ।। ४-३०६।। तदोस्तः।। ४-३०७।। लोळः ४-३०८|| श-षोः सः।। ४-३०९।। हृदये यस्य पः।। ४-३१०।। टोस्तुर्वा ।। ४-३११।। क्त्व स्तूनः।। ४-३१२।। द्धृन-त्थू नौ ष्ट्वः।। ४-३१३।। र्य-स्न-ष्टां रिय-सिन-सटाः क्वचित्।। ४-३१४।। क्यस्येय्यः।। ४-३१५।। कृगो डीरः ।। ४-३१६।। याद्दषादे १स्तिः ।। ४-३१७।। इचेचः।। ४-३१८।। आ-ते श्रच।। ४-३१९।। भविष्यत्येय्य एव ।। ४-३२०।। अतो उसे र्डातो-डातु।।४-३२१।। त दिदमोष्टा नेन स्त्रियां तु नाए।। ४-३२२।। शेषं शौरसेनीवत्।। ४-३२३।। नकग-च-जादि-षट्-शम्यन्तसूत्रोक्तम्। पैशाच्यां क-ग-च-ज-त-द- प-य-वां।। ४-३२४।। चूलिका-पैषाचिके तृतीय-तुर्ययोराद्य-द्वितीयौ।। ४-३२५।। रस्य लो वा।। ४-३२६।। नादि-युज्योरन्येषाम्॥ ४-३२७।। शेषं प्राग्वत्।। ४-३२८।। स्वराणां स्वराः प्रायोपभ्रंषे ।। ४-३२९॥ स्यादौ दीर्घ-हस्वौ।। ४-३३०।। स्यमोरस्योत्।। ४-३३१।। सौ पुंस्योद्वा।। ४-३३२।। ॥ एट्टि ४-३३३।। ङ नेच्च।। ४-३३४।। भिस्येद्वा।। ४-३३५।। ङसे हे-हू।। ४-३३६।। भ्यसो हु।। ४-३३७|| उसः सु-हो-स्सवः।। ४-३३८।। आमो हं।। ४-३३९।। हुंचेदुदभ्याम्।। ४-३४०।। ङसि-भ्यस्-डीनां हे-हुं-हयः।। ४-३४१|| आट्टो णानुस्वारौ।। ४-३४२।। एं येदुतः।। ४-३४३।। स्यम्-जस्-शसां लुक्।। ४-३४४ ।। पष्ठयाः।। ४-३४५।। आमन्त्र्ये जसो होः।। ४-३४६।। भिस्सुपोर्हि।। ४-३४७।। स्त्रियां जस्-शसोरूदोत्।। ४-३४८|| ट ए।। ४-३४९।। ङस्-ङस्योर्हे ।। ४-३५०।। भ्यसमो हुँः।। ४-३५१।। डे हिं।। ४-३५२।। क्लीबे जस्-शसोरिं।। ४-३५३।। कान्तस्यात उंस्यमोंः ॥ ४-३५४॥ सर्वादेर्डसेहीं ।। ४-३५५।। किमो डिहे वा।। ४-३५६।। डे हि।। ४-३५७।। यत्तत्किंभ्यो ङसो डासुन वा।। ४-३५८।। स्त्रियां डहे।। ४-३५९।। यत्तदः स्यमोधुं त्र।। ४-३६०।। इदम इमुः क्लीबे।। ४-३६१ ।। एतदः स्त्री-पुं-क्लीबे एह-एहो-एहु।। ४-३६२।। एइर्जस्-शसोः।।
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