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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 149 कुछ उदाहरण इस प्रकार है:-द्वौ अथवा द्वे कुरूतः=दोण्णि कुणन्ति-दो करते हैं। इस उदाहरण में यह प्रदर्शित किया गया है कि संस्कृत में कुरूतः क्रियापद रूप द्विवचनात्मक है; जबकि प्राकृत में कुणन्ति क्रिया पद रूप बहुवचनात्मक है; यह स्थित बतलाती है कि प्राकृत में द्विवचन का अभाव होकर उसके स्थान पर बहुवचन की ही प्राप्ति होती है। द्वौ अथवा द्वे कुरूतः दुवे कुणन्ति-वे दो दो (कामों) को करते है। इस उदाहरण में 'द्वौ अथवा द्वे पद द्विवचनात्मक एवं द्वितीया विभक्ति वाले हैं; जबकि इनका प्राकृत रूपान्तर 'दुवे' पद बहुवचनात्मक और द्वितीया विभक्ति वाला है। कुरूतः क्रिया पद संस्कृत में द्विवचनात्मक है; जबकि प्राकृत में इसका रूपान्तर बहुवचनात्मक है। अन्य दृष्टान्त इस प्रकार है:विभक्ति-संस्कृत द्विवचनात्मक प्राकृत बहुवचनात्मक तृतीया-द्वाभ्याम् दोहि-दो से। पंचमी-द्वाभ्याम् दोहिन्तो; दो सुन्तो-दो से। सप्तमी-द्वयोः दोसु-दो में; दो पर। प्रथमा-हस्तौ हत्था दो हाथा द्वितीया-हस्तौ हत्था दो हाथों को। प्रथमा-पादौ पाया-दौ पैर। द्वितीया-पादौ पाया-दौ पैरों को। प्रथमा-स्तनको थणया दो स्तन। द्वितीया-स्तनको थणया-दोनों स्तनों को। प्रथमा-नयने (नपुं) नयणा (पुं०)=दो आंखे। द्वितीया-नयने (नपुं) नयणा (पुं०) दोनों आंखों को। यों संस्कृत भाषा की अपेक्षा से प्राकृत भाषा में रहे हुए वचन-संबंधी अन्तर को समझ लेना चाहिये। 'दोण्णि' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१२० में की गई है। कुरुतः संस्कृत वर्तमानकालीन द्विवचनात्मक प्रथम-पुरुष का क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूपान्तर कुणन्ति होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-६५ से संस्कृत मूल धातु डुकृञ्-कृ के स्थान पर प्राकृत में कुण' आदेश की प्राप्ति; ३-१३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन के प्रयोग की प्राप्ति और ३-१४२ से वर्तमानकाल में प्रथमपुरुष के बहुवचनार्थ में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कुणन्ति रूप सिद्ध हो जाता है। 'दुवे' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१२० में की गई है। 'कुणन्ति' क्रियापद रूप की सिद्धि इसी सूत्र में ऊपर की गई है। द्वाभ्याम् संस्कृत तृतीया विभक्ति का द्विवचनात्मक संख्या रूप विशेषण पद है। इसका प्राकृत रूप दोहिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-११९ से संस्कृत के मूल शब्द 'द्वि' के स्थान पर प्राकृत में 'दो' रूप की आदेश प्राप्ति; तत्पश्चात् ३-७ से और ३-१२४ के निर्देश से तथा ३-१३० के विधान से प्राकृत प्राप्त रूप 'दो' में तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भ्याम्' के स्थान पर 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दोहिं रूप सिद्ध हो जाता है। 'दोहिन्तो' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-११९ में की गई है। द्वाभ्याम् संस्कृत पंचमी विभक्ति का द्विवचनात्मक संख्या रूप विशेषण-पद है। इसका प्राकृत रूप दोसुन्तो है। इसमें सूत्र-संख्या ३-११९ से संस्कृत के मूल शब्द "द्वि' के स्थान पर प्राकृत में 'दो' रूप की आदेश प्राप्ति; तत्पश्चात् ३-९ से और ३-१२४ के निर्देश से तथा ३-१३० के विधान से प्राकृत रूप 'दो' में पचंमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'भ्याम् के स्थान पर 'सुन्तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'दोसुन्तो' रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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