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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 127 'अहम्' संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप 'ह' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१०५ से 'अहम्' के स्थान पर 'ह' रूप की आदेश प्राप्ति होकर 'हं' रूप सिद्ध हो जाता है। वृद्धा संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप विद्धा होता है। इसमें सूत्र-संख्या १–१२८ से 'ऋ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; ३-३२ एवं २-४ के निर्देश से प्राप्त रूप 'वृद्ध में पुल्लिगत्व से स्त्रीलिंगत्व के निर्माण हेतु स्त्रीलिंग सूचक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति; ४-४४८ से प्राप्तांग विद्धा' में आकारान्त स्त्रीलिंग रूप में संस्कृत प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी प्राप्त प्रत्यय 'सि-स' की प्राप्ति और १-११ से प्राप्त प्रत्यय 'स्' हलन्त होने से इस 'स्' प्रत्यय का लोप होकर प्रथमा-एकवचनार्थक स्त्रीलिंग रूप 'विद्धा' सिद्ध हो जाता है। 'कि' अव्यय रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२९ में की गई है। प्रमृष्टः संस्कृत विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप पम्हटु होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'र' का लोप; ४-२५८ से 'म्' को 'म्ह' रूप से निपात-प्राप्ति अर्थात् नियम का अभाव होने से आर्ष स्थिति की प्राप्ति; १-१३१ से 'ऋ' के स्थान पर 'उ' की प्राप्ति; २-३४ से 'ष्ट' के स्थान पर 'ठ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ठ' को द्वित्व 'ठ्ठ की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ' के स्थान पर 'ट्' की प्राप्ति और १-११ से अन्त्य विसर्ग रूप हलन्त व्यञ्जन का लोप होकर पम्हुटु रूप सिद्ध हो जाता है। ___ अस्मिन् संस्कृत क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप 'म्मि' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१४७ से मूल संस्कृत धातु''अस्' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचनार्थ में संस्कृत प्रत्यय 'मि' की संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृत रूप 'अस्मि' के स्थान पर प्राकृत में 'म्हि=म्मि' रूप की आदेश प्राप्ति होकर 'म्मि' रूप सिद्ध हो जाता है। 'अहं' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-४० में की गई है। 'अहयं सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१९९ में की गई है। कृत-प्रणामः संस्कृत विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप कय-प्पणामो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ'की प्राप्तिः १-१७७ से'त' का लोपः १-१८० से लोप हए'त' के पश्चात शेष रहे हए'अ'के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; २-७९ से 'र' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'प्प' की प्राप्ति ओर ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्तांग ‘कय-प्पणाम में अकारान्त पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'सि-स्' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ प्रत्यय की संप्राप्ति होकर 'कय-प्पणामो रूप सिद्ध हो जाता है।।३-१०५।। अम्ह अम्हे अम्हो मो वयं भे जसा।। ३-१०६।। अस्मदो जसा सह एते षडादेशा भवन्ति।। अम्ह अम्हे अम्हो मो वयं से भणामो।। अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद् के प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'वयम् के स्थान पर प्राकृत में क्रम से छह रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे छह रूप क्रम से इस प्रकार हैं:- (वयम्=) अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं और भे। उदाहरण इस प्रकार है:- वयम् भणामः-अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं भे भणामो अर्थात् हम अध्ययन करते हैं! 'वयम्' संस्कृत प्रथमा बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप हैं इसके प्राकृत रूप अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं और भे होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१०६ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के प्रथमा बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' की संप्राप्ति होने पर प्राप्त रूप 'वयम्' के स्थान पर प्राकृत से उक्त छह रूपों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर क्रम से छह रूप 'अम्ह, अम्हे, अम्हो, मो, वयं और, भे' सिद्ध हो जाते हैं। भणामः संस्कृत क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप 'भणामो' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-१३९ से प्राकृत हलन्त 'धातु' भण्' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५५ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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