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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 119 'छ' को द्वित्व छ्छ' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व'छ्' के स्थान पर 'च्' की प्राप्ति; ४-२३९ से प्राप्त प्राकृत धातु 'पेच्छ' में हलन्त होने से विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'च् की प्राप्ति; ३-१५४ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' को 'आ' की प्राप्ति और ३-१४१ से प्राप्तांग 'पेच्छा' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृत आत्मनेपदीय प्रत्यय 'इ' के स्थान पर प्राकृत में 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पेच्छामि क्रियापदीय रूप सिद्ध हो जाता है।।३-९३।।
भे दि दे ते तइ तए तुमं तुमइ तुमए तुमे तुमाइ टा ।।३-९४।। युष्मदष्टा इत्यनेन सह एते एकादशादेशा भवन्ति ।। भे दि दे ते तई तए तुम तुमइ तुमए तुमे तुमाइ जम्पि।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा-आ' की संयोजना होने पर 'मल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कत रूप 'त्वया' के स्थान पर प्राकत में क्रम से ग्यारह रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे ग्यारह रूप कम से इस प्रकार है।:- (त्वया ) भे, दि, दे, ते, तइ, तए, तुमं, तुमइ, तुमए, तुमे और तुमाइ। उदाहरण इस प्रकार है:- त्वया कथितम्=भे, दि, दे, ते, तइ, तए; तुमं, तुमइ तुमए, तुमे और तुमाइ जम्पिअं अर्थात् तेरे द्वारा (या तुझ से) कहा गया है। ___ त्वया संस्कृत तृतीया एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप ग्यारह होते हैं। भे, दि,दे, ते, तइ, तए, तुम, तुमइ, तुमए, तुमे और तुमाइ। इनमें सूत्र-संख्या ३-९४ से संस्कृत रूप 'त्वया' के स्थान पर कम से इन्हीं ग्यारह रूपों की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से ये ग्यारह रूप 'भे, दि, दे, ते, तइ, तए, तुमं, तुमइ, तुमए, तुमे और तुमाइ सिद्ध हो जाते हैं।
कथितम संस्कत विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकत रूप जम्पिअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-२ से मूल संस्कृत धातु 'कथ्' के स्थान पर प्राकृत में 'जम्प' रूप की आदेश प्राप्ति, ४-२३९ से प्राप्त प्राकृत धातु 'जम्प' में हलन्त होने से विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-१५६ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; ४-४४८ से संस्कृत भूतकालीन भाव वाच्य क्रियापदीय प्रत्यय 'क्त-त' की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त उक्त प्रत्ययात्मक 'त्' का लोप; ३-२५ से पूर्वोक्त रीति से प्राप्तांग 'जम्पिअ' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर जम्पिअं रूप सिद्ध हो जाता है। ३-९४।।।
भे तुब्भेहि उज्झेहिं तुम्हेहिं उव्हेहिं उय्हेहिं भिसा।। ३-९५।। युष्मदो भिसा सह एते षडादेशा भवन्ति।। भे। तुब्भेहिं। ब्मो म्ह-ज्झौ वेति वचनात् तुम्हेहिं तुझेहिं उज्झेहि उम्हहिं तुय्येहिं उव्हेहिं भुत्त। एवं चाष्टरूप्यम्।। __ अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'मिस्' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश-प्राप्त संस्कृत रूप 'युष्माभिः' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से छह रूपों की आदेश प्राप्ति हआ करती है। वे छह रूप क्रम से इस प्रकार है:- भे तब्भेहिं. उज्झेहि, उम्हेहिं. तय्येहिं और उय्येहिं। सूत्र-संख्या ३-१०४ के विधान से आदेश-प्राप्त द्वितीय रूप 'तुब्भेहिं में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ की क्रम से और वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्ति हुआ करती है; तदनुसार उक्त छह रूपों के अतिरिक्त दो रूप और इस प्रकार होते हैं:- "तुम्हेहिं और तुज्झेहिं'; यों 'युष्माभि' के स्थान पर प्राकृत में कुल आठ रूपों की क्रम से (एवं वैकल्पिक रूप से) आदेश प्राप्ति हुआ करती है। उदाहरण इस प्रकार है:- युष्माभिः भुक्तम्भे , (अथवा) तुब्भेहिं, (अथवा) उज्झेहिं, (अथवा) उम्हेहिं (अथवा) तुम्हेहिं, (अथवा) उव्हेहिं, (अथवा) तुम्हेहिं और (अथवा) तुज्झेहिं भुत्तं अर्थात् तुम सभी द्वारा (अथवा तुम सभी से) खाया गया है।
युष्माभि संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप आठ होते हैं:- भे तुब्मेहिं, उज्झेहि, उम्हेहिं, तुम्हेहिं, उय्हेहिं और तुझेहिं। इनमें से प्रथम छः रूपों में सूत्र-संख्या ३-९५ से सम्पूर्ण संस्कृत
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