________________
414: प्राकृत व्याकरण
सइरं सई
वेव्वे वेसम्पायणो वेसवणो वेसिअं
वेसो वेहव्वं वोक्कन्त वोण्टं वोत्तुं वोद्रह वोद्रहीओ वोसिरणं व्व
शक्
आमंत्रण-अर्थक;२-१९४। आमन्त्रण-अर्थक; २-१९३, १९४| पु. (वैशम्पायन:) व्यास ऋषि का शिष्य; १-१५२। सउणो पुं (वैश्रवणः) कुबेर; १-१५२। न (वैशिकम्) जैनेतर शास्त्र विशेष, काम शास्त्र; सउरा १-१५२।
सउहं वि (द्वेष्यः) द्वेष करने योग्य, अप्रीति कर; २-९। संवच्छरो न (वैधव्यम्) विधवापन, रांडपन; १-१४८। संवट्रिअं वि (व्युत्क्रान्तम्) विपरीत क्रम में स्थित; १-११६। न (वृन्तम्) फल-पत्र आदि का बंधन; १-३९। संवत्तओ हे कृ. (वक्तुम्) बोलने के लिये; २-२१७। संवत्तणं दे वि. (तरूण), युवा; २-८०1 स्त्री. (तरूण्यः ) तरूण महिलाएं; २-८०। संवरो न. (व्युत्सर्जनम्) परित्याग; २-१७४। अव (इव) समान, उस जैसा; १-६, ७, ६६; संवुडो २-३४, १२९, १५०, १८२, २११।
संसओ
संसिद्धिओ सिक्खन्तु आज्ञार्थक (शिक्षव्यम्) शिक्षाशील हों; संहारो २-८०१
सक्कयं (धातु) शोभने अर्थ में।
सक्कारो सोहइ अकर्मक आत्मने (शोभते) वह सुशोभित सक्कालो होता है; १-१८७, २६०। (धातु) विश्राम अर्थ में।
सक्को विसमइ अक (विश्राम्यति) विश्राम करता है; सक्खं १-४३॥ (धातु) सुनने अर्थ में।
सक्खिणो सोउआण स कृ. (श्रुत्वा) सुन करके; २-१४६ संकरो सोच्चा सं कृ (श्रुत्वा ) सुन करके; २-१५। सुओ वि. (श्रुतः) सुना हुआ; १-२०९। (धातु) आलिंगन अर्थ में।
संखायं सिलिट्ठ वि. (श्लिष्टम्) आलिंगन किया हुआ; २-१०६।
संखो आले?अं हे. कृ. (आश्लेष्टुम्) आलिंगन करने के लिये; १-२४; २-१६४।
संखो आलेट्छु हे. कृ. (आश्लेप्टुम्) आलिंगन करने के संग. लिये; २-१६४।
संगमो आलिद्धो वि.पु. (आश्लिष्टः) आलिंगित; २-४९, संगहिआ ९०। (धातु) श्वास लेना।
संघारो ऊससइ सक (उच्छ्वसति) वह ऊंचा सांस लेता संघो है; १-११४। वीससइ सक (विश्वसिति) वह विश्वास करता सचावं है १-४३॥
सच्चं
.
न (स्वैरम्) स्वछन्दता; १-१५१। स्त्री. (शची) इन्द्राणी; १-१७७। पु. (शकुनिः) चील-पक्षी, शुभाशुभ सूचक बाहुस्पन्दन आदि शकुन १-१८०। पु. (सौराः) ग्रह-विशेष; सूर्य-संबंधी; १-१६२। न (सौधम्) राज-प्रासाद; चाँदी; १-१६२। संवच्छलो पु. (संवत्सरः) वर्ष, साल; २-२१॥ वि (संविर्तितम्) पिंडीभूत, एकत्रित; संवर्तयुक्त; २-३०। पु (संवर्तकः) बलदेव, वडवानल; २-३०। न (संवर्तनम्) जहां पर अनेक मार्ग मिलते हों, वह स्थान; २-३०। पुं (संवरः) कर्म-निरोध, मत्स्य की एक जाति; दैत्य विशेष; १-१७७। पुं. (संवृतः) आवृत, संगीपित; १-१७७। पु. (संशयः) संदेह, शंका; संशय, १-३०। . वि (सासिद्धिकः) स्वभाव सिद्ध, १-७०। पुं. (संहारः) बहु-जंतु-क्षय; प्रलय; १-२६४ । वि (संस्कृतम्) संस्कार-युक्त; १-२८; २-४ | पु. (सत्कारः) सन्मान, आदर, पूजा; १-२८; २-४ । पु. (सत्कारः) संस्कार, सन्मान, आदर, पूजा; १-२५४| वि. (शक्तः) समर्थ, शक्ति युक्त; २-२। अव (साक्षात्) प्रत्यक्ष, आंखों के सामने, प्रकट; १-२४१ वि (साक्षिण:) गवाह, साक्षी; २-१७४। पु. (शंकरः) शिव, महादेव; १-१७७। न (श्रृंखलम्) सांकल, बेड़ी, आभूषण-विशेष; १-१८९॥ वि (संस्त्यानम्) आवाज करने वाला, प्रतिध्वनि; १-७४। पुं. (शंख:) शंख, जल-जन्तु-विशेष; १-३०, १८७1 पु. (शंख:) शंख, जल-जन्तु-विशेष, १-३०। न. (श्रृंगम्) सींग; १-१३० । पु. (संगमः) मेल, मिलाप; १-१७७। वि (संगृहिता) जिसका संचय किया गया हो वह; २-१९८ पु. (संहारः) बहु जन्तु-क्षय; प्रलय; १-२६४। पु. (संघः) साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका का समुदाय; प्राणी समूह; १-१८७) न (सचापम्) धनुष्य सहित; १-१७७। न. (सत्यम्) यथार्थ-भाषण; सत्य-युग, सिद्धांत; २-१३। वि. (सच्छायम्) छाया सहित; कान्ति-युक्त; १-२४९॥ वि (सच्छायम्) छाया-सहित; तुल्य, सदृश; १-२४९।
संकलं
श्लिष्
श्वस
सच्छायं
सइ
सइ
सर्व (सः) वह; २-१८४। अ. (सकृत्) एक समय, एक बार; १-१२८ अ (सदा) हमेशा, निरन्तर; १-७२। न (सैन्यम्) सेना, लश्कर; १-१५१।
सच्छाहं
सइन्नं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org