________________
400 : प्राकृत व्याकरण
नेरइओ
नेहाल
नेहो
नोमालिआ
नोहलिया
पच्छा
पइट्ठा
पइटाणं
पइटिअं पइण्णा पइसमयं पइहरं पई पईवं पईवो पईहरं पउट्ठो पउट्ठो
पट्टणं
पठ
वि (नैरयिकः) नरक में उत्पन्न हुआ जीव; १-७९। पच्चओ वि (स्नेहालुः) प्रेम करने वाला; २-१५९। पु (स्नेहः) तैल आदि चिकना रस, प्रेम; २-७७ पच्चडिअ १०२। स्त्री (नवमालिका) सुगन्धित फूल वाला वृक्ष पच्चूसो विशेष; १-१७०।
पच्छं स्त्री (नव फलिका) जाती फले, नवोत्पन्न फले. पच्छा नूतन फल वालो; १-१७०। (प)
पच्छिम स्त्री. (प्रतिष्ठा) प्रतिष्ठा, इज्जत, सम्मान; १-३८, २०६।
पच्छे कम्म न (प्रतिष्ठानम्) स्थिति, अवस्थान, आधार, आश्रय; १-२०६।
पज्जत्तं वि (प्रतिष्ठितम्) रहा हुआ; १-३८|
पज्जन्तो स्त्री, (प्रतिज्ञा) प्रतिज्ञा, प्रण, शपथ; १-२०६। न (प्रतिसमयम्) प्रतिक्षण, हर समय; १-२०६। पज्जा न (पतिगृहम्) पति का घर; १-४।
पज्जाओ पु (पतिः) स्वामी, १-५।। वि (प्रतीपम्) प्रतिकूल; १-२०६।
पज्जुण्णो पु (प्रदीपः) दीपक, दीया; १-२३१॥
पञ्चावणा न (पतिगृहम्) पति का घर; १-४। पु वि (प्रवृष्टः) बरसा हुआ; १-१३१ । पु (प्रकोष्ठः) कोहनी के नीचे के भाग का नाम; पट्ठी १-१५६। वि (प्रगुण:) पटु, निर्दोष, तैयार; १-१८०। पढइ स्त्री (पवृत्तिः) प्रवर्तन, समाचार, कार्य; १-१३१। पडसुआ न (पद्मम्) कमल; १-६१; २-११२। पु (पौर-जन) नगर-निवासी, नागरिक; १-१६२।। पडाया वि (प्रचुरम्) प्रभूत, बहुत; १-१८०)
पडायाणं न (पौरूषम्) पुरूषत्व, पुरूषार्थ; १-१११, १६२। पु (पौर) नगर में रहने वाला; १-१६१।
पडिकरइ पु (पयः) दूध और जल; १-३२। पु (प्रयोगः) काम में लाना; शब्द योजनाः पडिकूलं १-२४५)
पडिक्कूलं पु (पंक:) कीचड़; १-३०।
पडिनिअत्तं वि (पांसनः) कलंकित करने वाला; दूषण लगाने पडिप्फद्धी वाला; १-७०।
पडिभिन्नो स्त्री (पांसुली) कल्टा, व्यभिचारिणी स्त्री: पडिमा २-१७९। पु (पांसु) (पांशू) धूली, रज, रेणु; १-२९,७०।। पडिवआ पु (परों) कुठार, कुल्हाडा; १-२६)
पडिवण्णं वि (पक्वम्) पका हुआ; १-४७, २-७९। पडिवया वि (पक्वा) पकी हुई; २-१२९।
पडिसारो देशज वि (समर्थः) समर्थ, शक्त; २--१७४ | पु (पक्ष) तरफ, ओर २-१६४।
पडिसिद्धी पु (पक्ष) पक्ष में, तरफदार में, जत्था में; २-१४७। पु (पक्षः) आधा महीना; २-१०६।
पडिसोओ पंको पु (पंकम्) कीचड़; १-३०। न (प्रावरणम्) वस्त्र, कपड़ा; १-१७५/
पु (प्रत्ययः) व्याकरण में शब्द के साथ जड़ने वाला शब्द विशेषः २-१३। देशज वि (?) (क्षरित) झरा हुआ; टपका हुआ; २-१७४। पच्चूहो पु (प्रत्ययः) प्रातःकाल; २-१४। वि (पथ्यम्) हितकारी; २-२१ । वि (पथ्या) हितकारिणी; २-२१ ।
अ (पश्चात्) पीछे; २-२१॥ वि न (पश्चिमम्) पश्चिम दिशा का, पाश्चात्य; पश्चिम दिशा; २-२१॥ न (पश्चात्-कर्म) पीछे किया जाने वाला कार्य: १-७९। वि (पर्याप्तम्) पर्याप्त, काफी; २-२४। पु (पर्यन्तः) अन्त सीमा तक; प्रान्त भाग; १-५७; २-६५। स्त्री (प्रज्ञा) बुद्धि, मति; २-८३। पु (पर्यायः) समान अर्थ का वाचक शब्द; उत्पन्न होने वाली नूतन अवस्था; २-२४। पु (प्रद्युम्नः) श्रीकृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न; २-४२। स्त्री न देशज (पञ्च पञ्चाशत्) पचपनः संख्या विशेष ; २-१७४। न (पतनम्) नगर, शहर; २-२९। वि (पृष्ठी) पीछे वाली; १-१२९, २-९०। सक (पठ्) पढ ना। सक (पठति) वह पढ़ता है; १-१९९, २३१ । स्त्री (प्रति श्रुत) प्रतिध्वनि, प्रतिज्ञा, १-२६; ८८, २०६। स्त्री (पताका) ध्वजा; १-२०६। न (पर्याणम्) घोड़े आदि का साज सामान; १-२५२। सक (प्रति करोति) वह प्रतिकार करता है: १-२०६। वि (प्रतिकूलम्) विपरीत, अनिष्ट; २-९७। वि (प्रतिकूलम्) विपरीत, अनिष्ट; २-९७। वि (प्रतिनिवृत्तम्) पीछे लौटा हुआ; १-२०६। पुवि (प्रतिस्पर्धी) प्रतिस्पर्धा करने वाला; १-४४| वि (प्रतिभिन्न) उस जैसा; १-६। स्त्री (प्रतिमा) प्रतिमा, जैन-शास्त्रोक्त नियम-विशेष; १-२०६। स्त्री (प्रतिपत्) पक्ष की प्रथम तिथि; १-४४। वि (प्रतिपन्नम्) प्राप्त; स्वीकृत, आश्रित; १-१०६/ स्त्री (प्रतिपत्) पक्ष की प्रथम तिथि; १-२०६। पु (प्रतिसारः) सजावट; अपसरण, विनाश; १-२०६। स्त्री (प्रतिसिद्धिः) अनुरूप सिद्धि अथवा प्रतिकूल सिद्धि १-४४, २-१७४। आर्ष पु (प्रतिस्त्रोतः) प्रतिकूल प्रवाह;उल्टा प्रवाहः २-९८।
पउणो पउत्ती पउमं पउरजण पउरं
पउरिसं
पउरो
पओ पओओ
पंको पंसणो
पंसुलि
पसू पक्क पक्का पक्कलो पक्ख पक्खे पक्खो
पंगुरणं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org