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________________ परिशिष्ट-भाग : 391 चोत्थी चोद्दसी चोद्दह चोरिअं चोरिआ चोरो चोव्वारो च्च च्चि च्चेअ छइअं छउमं छट्ठी छटो छड्डइ छणो छत्तवण्णो छत्तिवण्णो छद्दी वि स्त्री (चतुर्थी) चौथी; तिथि-विशेष; १-१७१। छिछि दे. अ. (धिक्-धिक्) छी-छी; धिक्-धिक्; स्त्री (चतुर्दशी) चौदहवीं; तिथि-विशेष; १-१७१। धिक्कार; २-१७४। वि (चतुर्दश) चौदह; संख्या-विशेष; १-१७१। छिछई दे स्त्री. (पुरचली) असती स्त्री कुलटा, छिनाल; न (चौर्यम्) चौर-कर्म; अपहरण; १-३५; २-१०७/ २-१७४। स्त्री (चौरिका) चोरी, अपहरण, १-३५/ छित्तं वि (क्षिप्तम्) फेंका हुआ; २-२०४। पुं. (चोरः) तस्कर; दूसरे का धन आदि चुराने अच्छिन वि. (अच्छिन) नहीं कटा हुआ; २-१९८। वाला चोर; १-१७७। छिरा स्त्री (शिरा) नस, नाड़ी, रग; १-२६६। पुं वि (चतुर्दारः) चार दरवाजा वाला; १-१७१। छिहा स्त्री (स्पृहा) स्पृहा, अभिलाषा; १-१२८; २-२३। अ. (एव) ही; २-८४।। छी न स्त्री. (क्षुतम्) छींक; १-११२; २-१७॥ अ. (एव) ही; १-८; २-९९; १८४, १९५, १९७) छीणं वि (क्षीणम्) क्षय-प्राप्त; कश, दुर्बल; २-३। अ. (एव) ही निश्चय वाचक अव्यय; २-९९, छीरं न. (क्षीरम्) दूध, जल; २-१७।। १८४। छुच्छं वि (तुच्छम्) अल्प, थोड़ा, हीन, जघन्य, नगण्य; १-२०४। वि. (स्थगितम्) आवृत्त, आच्छादित, तिरोहित; छुण्णा वि (क्षुण्णः) चूर चूर किया हुआ; विनाशित; २-१७ अभ्यस्त; २-१७/ न (छद्म) छल, बहाना, कपट, शठता, माया; छुत्तो दे वि (छुप्तः) स्पृष्ट; छुआ हुआ; २-१३८। २-११२। पुं. (क्षुरः) छुरा, नाई का उस्तरा, पशु का नख, स्त्री. (षष्ठी) छट्ठी; संबंध-सूचक विभक्ति; बाण; २-१७। १-२६५/ छुहां स्त्री. (क्षुध्) भूख; (तुघा)-अमृत; १-१७, २६५; पुं. वि. (षष्ठः) छट्ठा; १-२६५; २-७७॥ २-१७ सक (मुंचति) वह छोड़ता है; वह वमन करता छूढो वि (क्षिप्त) क्षिप्त; फेंका हुआ; प्रेरित; २-९२, है; २-३६। १२७) पु. (क्षण) उत्सव; २-२०।। वि. (क्षिप्तम्) फेंका हुआ; प्रेरित; २-१९। पुं. (सप्तवर्णः) वृक्ष विशेष; १-४९। पुं. (छेद) नाश; १-७। (सप्तवर्णः) १-४९; २६५। छेत्तं न (क्षेत्रम्) आकाश, खेत, देश, आदि; २-१७ दे स्त्री (छर्दिः) शैय्या; बिछौना, २-३६। न. (छन्दस्) कविता; पद्य; १-३३। अ (यदि) यदि, अगर; १-४०,२-२०४। पु. (छन्दस्) कविता; पद्य; १-३३। जइमा अ सर्व (यदि इमा) जिस समय में यह; १-४०। पुं. (षटपदः) भ्रमर, भंवरा; १-२६५; २-७७ जइह अ सर्व (यदि अहम्) जिस समय में मैं; यदि स्त्री (क्षमा) क्षमा; पृथिवी; २-१८,१०१। मैं; १-४० स्त्री (शमी) वृक्ष-विशेष; ऐसा वृक्ष जिसके जई पु. (यतिः) यति, साधु, जितेन्द्रिय, संयमी; आन्तरिक भाग में आग हो; १-२६५ । १-१७७। न. (छद्म) छल; बहाना, कपट; २-११२। जऊँणा स्त्री. (यमुना) नदी-विशेष यमुना; १-१७८। पुं. (षण्मुख) स्कन्द; कार्तिकेय; १-२५ । जऊँणायड जऊँणयई न (यमुना-तटम्) यमुना का किनारा; पुं. (षण्मुख) स्कन्द; १-२६५। १-४| न (क्षतम्) व्रण, घाव, (वि.) पीड़ित, व्रणित; जओ अ. (यतः) क्योंकि, कारण कि; १-२०९। २-१७ जक्खा पुं. (यक्षाः) व्यन्तर देवों की एक जाति; २-८९, वि. (छायावान्) छाया वाला, कान्ति-युक्त; ९०) २-१५९। जज्जो वि (जय्यः) जो जीता जा सके वह; जिस पर स्त्री. (छाया) छाया; कान्ति, प्रतिबिम्ब, परछाई; विजय प्राप्त की जा सके; २-२४॥ १-२४९,२-२०३। जट्टो पु. (जर्तः) देश-विदेश; उस देश का निवासी; पुं. (क्षार) खारा, सज्जीखार, गुड़; भस्म, मात्सर्य; २-३०। २-१७/ जडालो वि (जटिलो-जटा युक्तः) जटा युक्त; लम्बे स्त्री. (छागी) बकरी; १-१९१। लम्बे केशधारी; २-१५९। पुं. (छागः) बकरा; १-१९१। जडिलो वि (जटिलः) जटावाला; जटाधारी; १-१९४। पुं. (शावः) बालक, शिशु; १-२६५। जढरं जढलं न (जठरम्) पेट, उदर; १-२५४ । स्त्री. (छाया) कान्ति, प्रतिबिम्ब, परछाई; १-२४९।। जणा पुं. (जनाः) अनेक मनुष्य; २-११४। दे. (छुप्तः) स्पृष्ट; छूआ हुआ; २-१३८। जणब्भहिआ वि (जनाभ्यघिकाः) मनुष्य से भी अधिक; २-२०४। जइ छन्दो छप्पओ छमा छमी छंमुहो छम्मुहो छयं छाइल्ला छाया छारो छाली छालो छावो छाही छिक्को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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