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376 : प्राकृत व्याकरण
इत्याचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि विरचितायां सिद्ध हेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञ
शब्दानुशासन वृत्तौ अष्टमस्याध्यायस्य द्वितीयः पादः।। अर्थ:- इस प्रकार आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित 'सिद्ध-हेमचन्द्र-शब्दानुशासन' नामक संस्कृत-प्राकृत-व्याकरण की स्वकीय 'प्रकाशिका' नामक संस्कृतीय टीकान्तर्गत आठवें अध्याय का अर्थात् प्राकृत व्याकरण का द्वितीय चरण समाप्त हुआ।।
___-: पादान्त मंगलाचरण :द्विषत्-पुर-क्षोद-विनोद-हेतो र्भवादवामस्य भवद्भुजस्य।।
अयं विशेषो भुवनैकवीर! परं न यत्-काममपाकरोति।। १।। अर्थः-हे विश्व में एक ही-अद्वितीय वीर सिद्धराज! शत्रुओं के नगरों को विनष्ट करने में ही आनन्द का हेतु बनने वाली ऐसी तुम्हारी दाहिनी भुजा में और भव अर्थात् भगवान् शिव-शंकर में (परस्पर में) इतना ही विशेष अन्तर है कि जहाँ भगवान् शिव-शंकर काम-(मदन-देवता) को दूर करता है; वहाँ तुम्हारी यह दाहिनी भुजा काम (शत्रुओं के नगरों को नित्य ही नष्ट करने की इच्छा विशेष) को दूर नहीं करती है। तुम्हारे में और शिव-शंकर में परस्पर में इसके अतिरिक्त सभी प्रकार से समानता ही है। इति शुभम्। इति अष्टम-अध्याय के द्वितीय पाद की 'प्रियोदयाख्या'
हिन्दी-व्याख्या समाप्त।।
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