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________________ 70: प्राकृत व्याकरण 'प्रस्ताव:' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पत्थवो' और 'पत्थावो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र्' का लोप; २–८४ से ‘त्त' का 'थ'; २-८९ से प्राप्त 'थ' का द्वित्व ' थ्थ'; २-९० से प्राप्त पूर्व ' थ्' का 'त्' ; १-६८ से 'आ' का 'अ'; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से 'पत्थवो' और 'पत्थावो' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'रागः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'राओ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से 'म्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'राओ' रूप सिद्ध हो जाता है ।। १-६८ ।। महाराष्ट्रे ।। १-६९।। महाराष्ट्र शब्दे आदेराकारस्य अद् भवति ।। मरहट्ठ । मरहट्टो || अर्थः-महाराष्ट्र शब्द में आदि 'आ' का 'अ' होता है । जैसे- महाराष्ट्रम् - मरहट्टं । महाराष्ट्रः = मरहट्ठो । 'महाराष्ट्रम् ' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'मरहट्ठ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-६९ आदि 'आ' का 'अ'; १-८४ से 'रा' के 'आ' का 'अ'; २-७९ से 'ट्र' के 'र्' का लोप; २-३४ से 'ष्ट' का 'ठ'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ट्' का 'ट्'; २ - ११९ से 'ह' और 'र' वर्णों का व्यत्यय; ३ - २५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'मरहट्ठ' रूप सिद्ध हो जाता है। महाराष्ट्रः = 'मरहट्ठो' शब्द पुल्लिंग और नपुंसकलिंग दोनों लिंग वाला होने से पुल्लिंग में ३-२ से 'सि' के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'मरहट्टो' रूप सिद्ध हो जाता है ॥१-६९ ।। मांसादिष्वनुस्वारे ।। १-७० ।। मांसप्रकारेषु अनुस्वारे सति आदेरातः अद् भवति । मंसं । पंसू । पंसणो । कंसं । कसिओ । वसिओ । पंडवो । संसिद्धिओ। संजत्तिओ।। अनुस्वार इति किम् । मासं । पासू।। मांस। पांसु । पांसन। कांस्य। कॉसिक। वाशिक । पाण्डव। सांसिद्धिक। सांयात्रिक । इत्यादि । । अर्थः--मांस आदि जैसे शब्दों में अनुस्वार करने पर आदि 'आ' का 'अ' होता है। जैसे- मांसम्-मंसं । पांशूः-पंसू। पांसनः=पंसणो। कांस्यम्= कसं। कांसिकः=कसिओ। वाशिकः-वंसिओ। पाण्डवः-पंडवो। सांसिद्धिकः-संसिद्धिओ। सांयात्रिकः-संजत्तिओ। सूत्र में अनुस्वार का उल्लेख क्यों किया ? उत्तर-यदि अनुस्वार नहीं किया जायगा तो 'आदि आ' का 'अ' भी नहीं होगा। जैसे- मांसम् =मासम्। पांशुः =पासू।। इन उदाहरणों में आदि 'आ' का 'अ' नहीं किया गया है। क्योंकि अनुस्वार नहीं है। मंसं शब्द की सिद्धि १ - २९ में की गई है। पंसू शब्द की सिद्धि १ - २६ में की गई है। 'पांसनः ' 'संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप 'पंसणा' होता है। इसमें सूत्र संख्या १-७० से 'आ' का 'अ'; १ - २२८ से 'न' का 'ण'; ३-२ से पुल्लिंग में प्रथमा एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर 'पंसणो' रूप सिद्ध हो जाता है। कंसं की सिद्धि १ - २९ में की गई है। 'कासिक : ' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'कसिआ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - १७७ से द्वितीय 'क्' का लोप; १–७० से आदि ‘आ' का 'अ'; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर 'कसिआ' रूप सिद्ध हो जाता है। 'वाशिकः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'वंसिआ' होता है। इसमें सूत्र संख्या १ - २६० से 'श' का 'स'; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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