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________________ 68 : प्राकृत व्याकरण ३- २ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से 'ठविओ' और 'ठाविओ' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'प्रतिस्थापितः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'परिट्ठविओ' और 'परिट्ठाविओ' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-३८ से ‘प्रति' के स्थान पर 'परि'; ४ - १६ से 'स्था' का 'ठा'; २-८९ से प्राप्त 'ठ' को द्वित्व 'ठ्ठ'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' का 'ट्' ; १-२३१ से 'प' का 'व'; १-६७ से प्राप्त 'ठा' के 'आ' का विकल्प से 'अ'; १ - १७७ से 'त्' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर 'परिट्ठविओ' और 'परिट्ठाविओ' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'संस्थापितः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'संठविओ' और 'संठाविओ' होते हैं; इनमें सूत्र संख्या ४- १६ से 'स्था' का 'ठा'; १-६७ से प्राप्त 'ठा' के 'आ' का विकल्प से 'अ' ; १-२३१ से 'प' का 'व'; १-१७७ से 'त्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर क्रम से 'संठविओ' और 'संठाविओ' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'प्राकृतम्' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'पयय' और 'पायय' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १-६७ से 'पा' के 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १ - १७७ से 'क्' और 'त्' का लोप ; १ - १८० से 'क्' और 'त्' के शेष दोनों 'अ' को क्रम से 'य' की प्राप्ति; ३ - २५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'पयय' और 'पायय' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'तालवृन्तम्' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'तलवेण्टं, 'तालवेण्टं, 'तलवोण्ट' और तालवोण्टं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ' ; १-१३९ से 'क्र' का 'ए' और 'ओ' क्रम से; २ - ३१ से 'न्त' का 'ण्ट'; ३–२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'तलवेण्ट', 'तालवेण्टं,' 'तलवोण्ट' और 'तालवोण्ट' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'हालिक:' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'हलिओ' और 'हालिओ' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-६७ से आदि ‘आ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से 'हलिआ' और 'हालिओ' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'नाराचः' संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप 'नराओ' और 'नाराओ' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से 'च्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर क्रम से 'नराओ' और 'नाराओ' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'बलाका' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'बलया' और 'बलाया' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से 'क्' का लोप; १ - १८० से शेष 'अ' का 'य'; और सिद्ध हेम व्याकरण के २-४ -१८ आकारान्त स्त्रीलिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'आ' होकर क्रम से 'बलया' और 'बलाया' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'कुमारः' संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'कुमरो' और 'कुमारो' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १- ६७ से 'आ' का विकल्प से 'अ'; और ३-२ से पुल्लिंग में प्रथमा के एकवचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से 'कुमरो' और 'कुमारो' रूप सिद्ध हो जाते हैं। 'खादिरम् संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप 'खइ' और 'खाइ' होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १ - ६७ से आदि 'आ' का विकल्प से 'अ'; १-१७७ से 'द' का लोप; ३ - २५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से 'खइर' और 'खाइर' रूप सिद्ध हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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