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________________ ૪૮૮ [ इस ग्रंथमें कई गुजराती तथा हिंदी काव्य उद्धृत है। गुजराती काव्योंके अर्थ पादटिप्पणमें दिये हैं। जिन काव्योंके अर्थ 'श्रीमद् राजचंद्र' ग्रंथ तथा 'नित्यनियमादिपाठ' के हिंदी अनुवादमें आ चुके हैं उनका यहाँ पृष्ठनिर्देश किया गया है। जो काव्य इसी ग्रंथमें एकसे अधिक बार आये हैं उनका अर्थ एक ही जगह पादटिप्पणमें दिया है और इसका पृष्ठ-निर्देश इस सूचीमें है। इस ग्रंथमें जो विशिष्ट गुजराती कहावतें या शब्दप्रयोग किये गये हैं उनका अर्थ भी एक बार पादटिप्पणमें दिया गया है। इन वाक्यांशोंको यहाँ टेढे (Italic) अक्षरोंमें दर्शाया गया है। श्रीमद् राजचंद्र ग्रंथ, नि. पा. = नित्य नियमादि पाठ (भावार्थ सहित ) ] श्री. रा. = अमे सदा तमारा छईए अदेखो अवगुण करे अहो ! अहो ! श्री सद्गुरु अस्तिस्वभाव रुचि थई रे अहो जीव ! चाहे परम पद अधमाधम अधिको पतित अरिहंतो मह देवो अप्पा कत्ता विकत्ता य अथवा निश्चयन ग्रहे अनंतकाल हुं आथयो अहो ! अहो ! हुं मुजने कहुं अंतरंग गुण गोठडी रे आजनो लहावो लीजिये रे आत्मज्ञान त्यां मुनिपणुं आत्मभ्रांति सम रोग नहि आवे ज्यां एवी दशा आत्मज्ञान समदर्शिता देहादि आजी आशा औरनकी क्या कीजे ? इणविध परखी मन विसरामी इस भवको सब दुःखनको इक्को विमुक्का चिंतामणि उत्कृष्टे वीर्यनिवेसे उष्ण उदक जेवो रे उपर वेश अच्छो बन्यो ऊपजे मोहविकल्पथी ऋण संबंधे आवी मळ्या उपदेशामृत परिशिष्ट ३ अवतरण-अर्थ-सूची Jain Education International (६४) १६ नि.पा. २३८ एक वार प्रभु वंदना रे ए संकळना सिद्धिनी एगोहं नत्थि मे कोइ ४३ एगो मे सस्सदो अप्पा ७६ ए ज धर्मथी मोक्ष छे नि.पा. २९ एनुं स्वप्ने दर्शन पामे रे १६३ | कक्का कर सद्गुरुनो संग १६९ | कहना जैसी बात नहीं नि.पा. १५९ कम्म दव्वे हिं सम्म २२९ कहां जाये कहां उपने ? ३७९ कषायनी उपशांतता ३५० कर्म मोहनीय भेद बे २१८ | कथा नि.पा. १६२ नि.पा. २४७ नि. पा. १६८ नि.पा. १४५ नि.पा. २४३ | क्षमा शूर अर्हत् प्रभु काचो पारो खावुं अन्न कोटि वर्षनुं स्वप्न पण फूटयां कान कोण पति पत्नी पुत्रो तुज ? कोई माधव ल्यो, हांरे कोई (८७) खपी जवुं प्रेममां तारा ( पूरा काव्य ) ३८ खाजांनी भूकरी ६६ खामे मि सव्व जीवा १८० खोळ्ये खोटुं सर्वे पडे ५५ गई वस्तु शोचे नहीं २७ गच्छ मतनी जे कल्पना ५८ गुरु दीवो गुरु देवता ३४२ | गुरु समो दाता नहीं श्री रा. ६७२ गुरुको माने मानवी १० | गुण अनंत प्रभु ताहरा ए For Private & Personal Use Only ३२ ३८ १६३ १६३ नि.पा.२३१ ३४८ ११ १५ १८ ७६ नि.पा. २२२ नि.पा. २१६ ४७७ २९७ नि.पा. २२८ ९० (८४) २९,३९ ३६ १४९ २९ १० ३५ नि.पा. २५५ नि.पा. ३५५ १५ ११ १६ www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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