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उपदेशसंग्रह-३
३९३ आत्मा किसे कहेंगे? ज्ञानीने आत्माको देखा है। उन्होंने जिसे बताया उसे मान्य करें, उसके बिना नहीं। एक मृत्यु महोत्सव है। अन्य किसी स्थान पर नहीं मिलेगा। एक मृत्यु महोत्सव है। अन्य किसी स्थान पर नहीं मिलेगा। एक मृत्यु महोत्सव । 'धिंग धणी माथे किया रे, कुण गंजे नर खेट?' दूसरा अब नहीं है। यह वस्तु जैसी है वैसी ही है। उसे तो वही जानते हैं। उनकी श्रद्धा और प्रतीति, बस! 'आणाए धम्मो, आणाए तवो।' मुख्य यही है, बात यही है। दूसरी बात नहीं ली है। दृष्टिकी भूल नहीं है । जो है वही है। चाहे कुछ भी कहें, एक परमकृपालुदेव । 'थावं होय तेम थाजो रूडा राजने भजीए'-बस यही। ___ यह पुद्गल है, आत्मा नहीं; संयोग है, संयोगका नाश है। विराम लेता हूँ, विराम लेता हूँ। सबसे क्षमायाचना करता हूँ। एक आत्माके सिवाय अन्य बात नहीं है। परमकृपालुदेवने कहा था, "मुनियों, इस जीवको (प्रभुश्रीको) सोभागभाई की भाँति समाधिमरण होगा।" सोभागभाईको जो ध्यान था, वही है। अन्य कुछ मान्य नहीं, अन्य कुछ समझते नहीं। पर परमकृपालुदेव मान्य हैं। पुद्गलकी टक्कर, राखकी पुड़िया, फेंक देने योग्य है । सभी परमकृपालुदेवकी दृष्टिवालोंका कल्याण है। भावना है वह बड़ी बात है। 'फूल नहीं तो फूलकी पंखुडी।' कृपालुदेवकी दृष्टि पर सब आते हैं, सबका काम हो जायेगा। अन्य लाखों हों तो भी क्या? __ इतनी सामग्री पुद्गलकी है वह आत्मा नहीं। आत्मा तो जो है वही है। आत्मा है, नित्य है, कर्ता है, भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्षका उपाय है। चमत्कारी वचन है! दया की है। अनेक जीवोंका हित होगा। अनेकोंके हितके साथ अपना भी हित है। सब अच्छा ही होगा। यह तो माया है, पुद्गल है, वह नहीं । आत्मा है, ज्ञानीने जाना है। ज्ञानीने यथातथ्य जाना है, वह मान्य है। अंतिम बात कही। अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात । ऐसी अन्य कोई नहीं मिलेगी, पता नहीं है। पकड़ है, श्रद्धा है उसका कल्याण है। माया है। पुद्गल है। एक आत्मा है, एक सत्संग है। मैं तो रंकमें रंक, उनके दासका दास हूँ। बहुत अच्छा हुआ। मुझे कुछ लेना देना नहीं, समभाव है। मुझे कुछ नहीं, 'धिंग धणी माथे किया रे, कुण गंजे नर खेट?'
ता.१३-४-३६, शामको आत्माके सिवाय अन्य कुछ नहीं देखना है। जो है वह है, निकाला नहीं जा सकता। समताके सिवाय अन्य कोई बात नहीं। वही एकमात्र शस्त्र है। सर्व संघसे क्षमायाचना-वडवामें, खंभातमें। समता एक शस्त्र है। कोई हटा नहीं सकता, हट नहीं सकता, कोई काट नहीं सकता, कोई छेदन नहीं कर सकता। एक परमकृपालुदेवकी श्रद्धा करने योग्य है । समभाव ही स्थान है, अन्य नहीं।
चैत्र वदी ७, मंगल, सं.१९९२
ता. १४-४-३६, सबेरे
समता है, दुष्कर है, दुष्कर है, दुर्लभ है। महोत्सव, मृत्यु महोत्सव है।
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