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उपदेशामृत यह अच्छा है यह बुरा है ऐसा कुछ न करें। संकल्प-विकल्पने ही इस जीवका बुरा किया है। इसका इसको भारी है। हमें तो अभी प्रतिबंध कम कर आत्मभाव करने योग्य है। इसमें प्रमाद कर्तव्य नहीं है। समय मात्रका भी प्रमाद कर्तव्य नहीं है। दूसरे करेंगे उसका फल उन्हें मिलेगा। समदृष्टि रखें । मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ भावना भायें । ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय आदि अच्छे निमित्त बनायें। आत्मभावना भानेका पुरुषार्थ करें। समयमात्र भी प्रमाद न करें। 'समयं गोयम मा पमाए।'
परोक्षसे प्रत्यक्ष होगा। परोक्षका अभ्यास विशेष होगा तो प्रत्यक्ष होते देर नहीं लगेगी। अतः पुरुषार्थ करें । छोड़ना तो पड़ेगा ही। अन्यभावको छोड़ें, आत्मभावका अभ्यास बढ़ायें।
जे जाणुं ते नवि जाणुं, नवि जाण्युं ते जाणुं।
ता.१३-१-३६ हजारों जड़ पदार्थ इकट्ठे करें तो भी वे सुन सकेंगे? सुनता है वह एक आत्मा है। कैसा अपूर्व इसका माहात्म्य है! यह न हो तो सब मुर्दे हैं। सबको देखने-जाननेवाला और सर्व अवस्थामें उससे अलग रहनेवाला आत्मा है। उसकी मान्यता नहीं हुई। बात मान्यताकी है। आत्माकी शक्तियाँ अनंत कर्मोंसे आवरित है। उसमें मुख्य आठ कर्म हैं। वे सब एक मोहनीय कर्मके आधारसे टिके हुए हैं। उस मोहनीयके दर्शनमोह और चारित्रमोह ऐसे दो भेद हैं। दर्शनमोह अर्थात् विपरीत मान्यता। वह टले और यथार्थ मान्यता हो जाये तो सर्व कर्म क्षय हुए बिना नहीं रह सकते।
___'धिंग धणी माथे किया रे, कुण गंजे नर खेट, विमल' धिंग धणी अर्थात् आत्मा, उसे प्राप्त करने, पहचाननेका यह अपूर्व अवसर आया है। परमकृपालुदेवने कहा था कि अब क्या है? तुम्हारी देरीसे देर है। यह सच है। अब तो आपकी देरीसे देर है।
मुमुक्षु-यह सच है कि हमारी देरीसे देर है। पर हमें तैयार होनेके लिये क्या करना चाहिये?
प्रभुश्री-घरसे कपड़े पहनकर तैयार होकर आये हों तो फिर घर जाना नहीं पड़ता। पर गठरी लेने जानेका बाकी हो तो? वैसे ही तैयार होकर आये हों तो देर नहीं है।
सब छोड़े बिना छुटकारा नहीं है। जो अपना है उसे छोड़ना नहीं है। शेष सब देर-सबेर छोड़ना ही है, तो आजसे ही सर्व परभावके प्रति उदासीन होकर अपने स्वरूपकी ओर भाव-प्रेम, प्रीति-भक्ति बढ़ाना उचित है। आत्मभावका पुरुषार्थ निरंतर जाग्रत रखने योग्य है।
ता. १४-१-३६ कौवे, कुत्ते, ढोर, पशु ये सब आत्मा हैं। पर इनसे अभी कुछ हो सकता है? मनुष्यभवमें समझ हो सकती है। रोग हो जायेगा तब कुछ नहीं हो सकेगा। अभी जागृत होना चाहिये । सत्संग और बोधसे समझ आती है, अतः उसकी आराधना सदैव करें।
ज्ञानीने आत्माको यथार्थ जाना है। वैसा ही आत्मा मेरा है। उसके सिवाय अन्य कुछ भी मेरा
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