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उपदेशसंग्रह-३
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आबू, ता. २६-३-३५ आत्माका सुख अनंत है। आत्माकी खोज करें। उसका विचार नहीं किया। निवृत्तिमें आत्मविचार और अपूर्व आत्मलाभ हो सकता है। इसलिये ज्ञानी निवृत्तिकी ही इच्छा करते हैं।
आबू, ता.२९-३-३५, फाल्गुन वदी ९, १९९१ 'श्रीमद् राजचंद्र में से पत्रांक ४३१ का वाचन
__“आत्मारूपसे सर्वथा उजागर अवस्था रहे, अर्थात् आत्मा अपने स्वरूपमें सर्वथा जाग्रत हो तब उसे केवलज्ञान हुआ है, ऐसा कहना योग्य है, ऐसा श्री तीर्थंकरका आशय है।" उजागर अवस्थासे क्या तात्पर्य है?
सत्पुरुषके एक-एक वाक्यमें अनंत आगम समाये हुए हैं। इस पत्रमें गहन अर्थ समाहित है। सब जीव मोहनिद्रामें ऊँघ रहे हैं। ज्ञानी जाग्रत हुए हैं। ज्ञानियोंने जड़ और चेतन इन दो पदार्थों को अलग-अलग जाना है।
यह जीव अनादिसे मोहनिद्रामें सो रहा है। जहाँ-जहाँ जन्मा है, वहाँ-वहाँ लवलीन, तदाकार हो गया है। शरीरको अपना मानकर उसके साथ एकाकार होकर प्रवृत्ति करता है। जो संयोग है उसमें मैं और मेरापन जहाँ तहाँ कर बैठा है। मैं बनिया हूँ, पटेल हूँ, ब्राह्मण हूँ, स्त्री हूँ, पुरुष हूँ, सुखी हूँ, दुःखी हूँ, दर्जी हूँ, सुतार हूँ यों संयोग और कामको लेकर जो नाम पड़े, उसमें मैं और मेरापन कर बैठा है। क्या यह आत्माका सुख है? आत्माका सुख तो अनंत है, जिसे ज्ञानीने जाना है।
“हुं कोण छु? क्यांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारूं खरूं?" । आत्माको कभी नहीं सँभाला। इसका ध्यान नहीं रखा है। अब सावधान होनेका अवसर आया है। मनुष्यभव महादुर्लभ है। आत्माकी पहचानके बिना अनंतभव गये । इस भवमें पहचान कर लेनेका अवसर आया है। शीलव्रत महाव्रत है। संसारसमुद्रके किनारे पहुँचे हुएको ही यह व्रत आता है। 'नीरखीने नवयौवना लेश न विषयनिदान'- यह पद अलौकिक है।
"पात्र विना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान;
पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मतिमान." __ योग्यताके बिना रुका हुआ है। सब जीवोंको गुरुगमकी आवश्यकता है। उसके बिना ताले नहीं खुलेंगे। सत्पुरुषकी प्रतीति, श्रद्धा, विश्वासकी कमी है।
"आत्मभ्रांति सम रोग नहि, सद्गुरु वैद्य सुजाण;
__ गुरु आज्ञा सम पथ्य नहि, औषध विचार ध्यान." 'आत्मसिद्धि' चमत्कारिक है, लब्धियोंसे परिपूर्ण है। मंत्र समान है। माहात्म्य समझमें नहीं आया है। फिर भी प्रतिदिन पाठ किया जाये तो काम बन सकता है।
केवलज्ञान, परमार्थ सम्यक्त्व, बीजरुचि सम्यक्त्व तो क्या, पर अभी तो मार्गानुसारिता भी नहीं आयी, तब समकितकी तो बात ही क्या? फिर भी समकित सरल है, सुगम है, सुलभ है।
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