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________________ ३४५ उपदेशसंग्रह-३ परिणाम, भाव ही हमारे पास अभी पूंजी है। वह शुद्धताको प्राप्त हो ऐसे निमित्त सत्संग, सद्बोधकी आराधना करें। __ समकितसे मोक्ष है, बाह्य चारित्रसे मोक्ष नहीं है। सुरत, ता. १४-६-३४ मोक्ष क्या है? बंधसे छूटना मोक्ष है। सत्संग, सद्बोधसे वस्तुकी पहचान होती है। जड़चेतनका विभाग करना चाहिये। सत्पुरुष पर विश्वास, श्रद्धा, प्रतीति यह 'एकका अंक है। __ असद्गुरुसे पूरा जगत संसारसमुद्रमें डूबा है। मतमतांतर-आग्रहरहित ‘आत्मज्ञान त्यां मुनिपणुं' ऐसे ज्ञानी गुरुकी प्राप्ति, उनकी श्रद्धा ही जड़-चेतनकी पहचान करायेंगे। फिर जड़को चेतन नहीं मानेंगे और चेतनको जड़ नहीं मानेंगे। अनंतानुबंधी कैसे दूर हो? जीवको ज्ञानीपुरुषकी पहचान होनेपर तथाप्रकारसे अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ कम होनेका कारण बनने योग्य है। सूर्यके उदय होने पर अंधेरेका नाश होता है, वैसे ही ज्ञानीपुरुषका समागम, पहचान अनंतानुबंधीको दूर करनेका उपाय है। बापका कूआ होनेसे डूबकर मरा नहीं जाता। वैसे ही बापदादाने माना वह मेरा धर्म, वे मेरे गुरु, ऐसा आग्रह ही अनंतानुबंधी है। आत्मा श्वेतांबर नहीं है, दिगंबर नहीं है; वैष्णव नहीं है, स्त्री नहीं है, पुरुष नहीं है, वृद्ध नहीं है, युवान नहीं है। यों पर्यायदृष्टिको दूर कर मैं आत्मा हूँ-ज्ञानी सद्गुरुने जाना वैसा–यों आत्माकी ओर दृष्टि कब करेंगे? चेतन निर्विकल्प है, पर वर्तमानमें कल्पनाओंसे भरा हुआ है। निर्विकल्पदशा प्राप्त करनेके लिये सत्संग, सद्बोधका निरंतर सेवन करना चाहिये। - ज्ञानी उदयको भोगकर कर्म क्षय करते हैं, अज्ञानी कर्म बढ़ाता है। सुरत, ता. १८-६-३४ मनुष्यभव बहुत दुर्लभ है। सत् और शील मुख्य हैं। प्रतिज्ञा ली हो फिर भी मनसे सावधान रहना चाहिये। मनको मार डालें। धक्का मार-मारकर मार डालें। कल्पना है। हड्डी, माँस, लहू, पीप आदिसे भरे चमड़ेमें आसक्त होने जैसा क्या है? यह सब जो दिखायी देता है वह क्या आत्मा है? विश्वास रखें। श्रद्धा रखें। इसमें चमत्कार है! जो दिखाई दे रहा है वह सब जड़ है। देखनेवाला आत्मा भिन्न है। उस पर दृष्टि करें। जो पर्याय दिखायी देता है, वह जड़ है। जड़को द्रव्य, गुण, पर्याय हैं। आत्माको भी द्रव्य, गुण, पर्याय होते हैं। आत्माके पर्याय स्वपर्याय हैं और जड़के पर्याय परपर्याय हैं। परपर्यायमेंसे आत्मा पर दृष्टि करनी है। इसे बारंबार स्मरण करें। १. मूलभूत बात, शुरूआत, प्रारंभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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