________________
उपदेशसंग्रह-२
२८५ उपकार हुआ है! उस उपकारका बदला किसी प्रकार चुकाया नहीं जा सकता। स्थितिकरण! -मोक्षमार्गमें खड़ा रखना, स्थिर करना। अहा! कैसा गुण है! संपूर्ण जगत कहाँ खड़ा है? [मोहनलालजी महाराज सभामेंसे आये, उनसे उपगूहन और स्थितिकरण संबंधी वाचन करवाया
और उसका अर्थ पूछा ] प्रभुश्री-ग्लानिका अर्थ क्या है? मुनि मोहन-विचिकित्सा, दुगंछा। प्रभुश्री-सम्यग्ज्ञानादिमें ग्लानि क्या? मुनि मोहन०-प्रमाद, मंद उत्साह, अभाव, अनिच्छा आदि।
प्रभुश्री-ये प्रमाद, मंद उत्साह, अधैर्य, कोई प्रश्न पूछे तो अरुचि होना आदि दोष हैं। उन्हें दूर करनेसे सम्यक्त्वकी शुद्धि होती है। सभामें क्या वाचन हुआ?
मुनि मोहन-“सत्पुरुषकी आज्ञामें चलनेका जिसका दृढ़ निश्चय है और जो उस निश्चयका आराधन करता है उसे ही ज्ञान सम्यक्परिणामी होता है, यह बात आत्मार्थी जीवको अवश्य ध्यानमें रखना योग्य है। हमने जो ये वचन लिखे हैं उसके सर्व ज्ञानीपुरुष साक्षी हैं। __ अनंतबार देहके लिये आत्माका उपयोग किया है। जिस देहका आत्माके लिये उपयोग होगा उस देहमें आत्मविचारका आविर्भाव होने योग्य जानकर, सर्व देहार्थकी कल्पना छोड़कर, एकमात्र आत्मार्थमें ही उसका उपयोग करना, ऐसा निश्चय मुमुक्षु जीवको अवश्य करना चाहिये।"
(पत्रांक ७१९) मुझे ज्ञानावरणीयकर्मके आवरणसे यह समझमें नहीं आता कि क्या करने योग्य है? तो इस विषयमें बतानेकी कृपा कीजियेगा।
प्रभुश्री-वह हम कब नहीं बताते? उस पुरुष पर श्रद्धा है इसलिये इच्छा हो जाती है; नहीं तो हमें तो क्या कहना है?
जो कषाय छोड़नेके निमित्त हैं, उन निमित्तोंसे ही कषायबंध भी होता है और कषाय मनमें यों के यों रहा करते हैं-मनुष्यभव है इसलिये उसका पता तो लगता ही है। हमें तो अब कानमें दो शब्द उनकी आज्ञानुसार पड़े वैसे निमित्तोंमें रहना है, अतः ऐसे कषायके निमित्तों पर अरुचि रहती है।
पृच्छना-क्या प्रश्न पूछनेमें खींचतान करना उचित है? मनमें ऐसा लाना चाहिये कि ये तो समझते नहीं, मैंने जो सोच रखा है वह सत्य है इस आधार पर आग्रह रखकर चर्चा करनेमें या कषाय करनेमें क्या तथ्य है? यहाँ कैसा विनयका स्वरूप आया है? कैसा यथार्थ वर्णन किया है? आत्मा पर सत्का रंग चढ़ावे वह सत्संग या कषायका रंग चढ़ावे वह सत्संग? __ कोई प्रश्न करे तो धैर्यसे हमें जो उत्तर सूझे उसे कहनेमें क्या हर्ज है? फिर तर्कसे चाहे जैसा प्रश्न भले ही करे । साव गलत प्रश्न खड़ा किया हो तो भी उसका सरलतासे अपनेको समझमें आये वैसा मन खोलकर स्पष्टीकरण हो तो सत्संगमें रंग आता है। नहीं तो सत्संग कैसा? हमें कहाँ अपना आग्रह रखना है? समझमें आये वह कहना चाहिये और अंतिम तो वे ज्ञानी ही जानते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org