SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेशसंग्रह-१ २५१ होगी। पहले ‘एकम एक' यों पढ़ाई शुरू होती है। पढ़े बिना कहें कि बाँच, तो क्या बाँचेगा? इसी प्रकार जीवको जाननेकी जरूरत है। यह मेरा पुत्र, पिता, स्त्री, देह है ऐसा कौन करता है? भाव करता है। यह मेरा घर, यह सब । बंध और मोक्ष ये दो बात हैं। पहली बात बंध। ___ “सहु साधन बंधन थयां, रह्यो न कोई उपाय; सत्साधन समज्यो नहीं, त्यां बंधन शुं जाय?" बीस दोहे, क्षमापनाका पाठ ये महामंत्र हैं! कालकूट विष उतार दें ऐसे महामंत्र हैं। यदि इसका भेदी मिले और जानकारी ले तो सब हो जाय । जीव श्रवण करे तो विज्ञान प्राप्त होता है। श्रवण करनेसे पता लगता है। उससे कर्मका त्याग कर मोक्ष होता है। हमारे बाप-दादा करते आ रहे हैं; उसे कैसे छोड़ा जाय? तो कहते हैं कि धूल पड़ी उसमें! जो करना है वह तो किया नहीं। पुरुष, स्त्री, यह कौन है? आत्मा है। आत्मा पुरुष, स्त्री, पशु नहीं है। ये सब संबंध हैं, इसे तो छोड़ना है। मात्र एक आत्मा ही है। यह ठपका नहीं है, पर शिक्षा है। बीस दोहा और क्षमापनाका पाठ करने योग्य है। ता. २८-१-३६, सबेरे पत्रांक १८७ का वाचन "अंतिम स्वरूप समझने में, अनुभव करनेमें अल्प भी न्यूनता नहीं रही है। जैसा है वैसा सर्वथा समझमें आया है। सब प्रकारोंका एक देश छोड़कर बाकी सब अनुभवमें आया है। एक देश भी समझमें आनेसे नहीं रहा; परंतु योग (मन, वचन, काया)से असंग होनेके लिये वनवासकी आवश्यकता है; और ऐसा होने पर वह देश अनुभवमें आयेगा, अर्थात् उसीमें रहा जायेगा..." बात वस्तुतः एक सत् है और एक पर है। परको छोड़कर सत्को लिया अतः कुछ बाकी नहीं रहा । जाना तो सही, पर यहाँ क्या कहना है ? 'एक देश भी समझमें आनेसे नहीं रहा' क्या कहा? उन्होंने तो छोड़ा है। क्या छोड़ा है? परको छोड़ा है। अपना नहीं छोड़ा है और वह छोड़ा भी नहीं जा सकता। उन्होंने कहा असंग, तो अब संगवाला कैसे कहेंगे? किसी तारतम्यसे कह सकते हैं। प्रज्ञामें कचास है, जिससे सब समझमें नहीं आता। पर मूल बात तो यह है कि जो जाननेवाला है वह जानता है। उसको जाननेवाला है। आत्माको जाननेवाला ज्ञान है। जाननेवाला ही जानता है। परंत जड नहीं जान सकता-कछ भी करो. चाबी लगाओ, बुलाओ, यंत्र रखो, पर वह जानेगा नहीं और देखेगा भी नहीं। भेदका भेद क्या, यह जानना है और उसे वही जानता है। जिसे जानना है उसे जानता है ऐसा है कुछ ? सिद्धगतिमें हो या अन्य चौरासी लाख जीवयोनिमें हो, पर जाननेवाला तो है ही। वही जानता है, अन्य कोई नहीं जानता। इसमें किसकी कमी है? योग्यताकी । योग्यता आने पर समझमें आयेगा। स्यादाद मार्ग है। वचन आत्मा, काया आत्मा, मन आत्मा ऐसा कह सकते हैं और नहीं भी कह सकते । एकको समझमें आये और एकको न आये, वह योग्यताकी कमी है। कोई समझे, कोई न समझे इसका कारण यह है । जिसको है उसको है, अन्यको नहीं। कई लोग आत्माको नहीं मानते, इस देहके कारण आत्मा है ऐसा कहते हैं; जैसा मनमें आता है वैसा बोलते हैं। [चर्चा चली] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy