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उपदेशसंग्रह-१
२०७ यह ऐसा वैसा कथन नहीं है, समझने योग्य है । कहाँसे हाथ लगे? बड़ी बात है। इतना समझ जाये तो भी कामका है। पुण्यका संचय होता है। यह तो हलवाईकी दुकानकी खाजाकी चूरी। सत्पुरुषके वचनामृत हैं वे सिद्धांतके सारका सार है, चिंतामणिके समान हैं। यदि दो वचन भी ग्रहण हुए तो अनंत लाभ है। जो मानेगा उसका काम बनेगा। एक वचन भी कहाँसे मिलेगा? मिलना बहुत कठिन है। सत्संगका ऐसा योग कहाँसे मिलेगा?
___“सहु साधन बंधन थयां, रह्यो न कोई उपाय;
सत्साधन समज्यो नहीं, त्यां बंधन शुं जाय?" सब बंधनके नाश होनेका अवसर आया है। भिखारीके हाथमें घेबर आया है। अनंतकालसे भटक रहा है। अतः अब समझनेसे काम बनेगा । रुपये पैसे आदिकी दृष्टि है वह तो विष है, अब मेरी यह दृष्टि (आत्माकी), ऐसा होना चाहिये। अपने साथ एक धर्म आयेगा, और कुछ नहीं आयेगा । 'सवणे नाणे विनाणे' उसका काम हो गया। ऐसी वैसी बात नहीं है। अनजानमें जा रही है। विश्वास और प्रतीति नहीं आयी। पढ़ता है पर अलौकिक दृष्टि नहीं है, लौकिक ही लौकिक है, उसमें गुरुगम चाहिये। उसीके गुणग्राम, उसीकी स्तुति । एक मनुष्यभव प्राप्त कर करने योग्य क्या है? कहिये।
मुमुक्षु-समकित।
प्रभुश्री-भक्ति श्रेष्ठमें श्रेष्ठ है, ठिकाने पर पहुँचनेका मार्ग है। भक्तिभावसे कल्याण होता है, पर घर बैठे नहीं। यह भाव करें, फिर मौका नहीं आयेगा। अतः भक्ति करनी चाहिये।
ता. १०-१-३६, सबेरे गुत्थी सुलझ जाये तो पता लगता है। अतः विचारणीय जरूर है। कौन सुनेगा? यही (आत्मा), अन्य कोई नहीं सुनेगा। जड़को कुछ विचार आयेगा? शांति आयेगी? इसे (आत्माको) निकाल दें तो सब पड़ा रह जायेगा। दिखाई नहीं देता, क्योंकि आँखमें पीलिया है। मैं तो यह समझनेके लिये कहता हूँ। पीलिया हो तो अन्य दिखाई देता है। जिस स्थानमें वैराग्य होना चाहिये उस स्थानमें विकार होता है और इनको (ज्ञानीको) तो विकारके स्थानोंमें वैराग्य होता है। कृपालुदेवने कहा है कि यह सब मनके कारण है। मनके बिना कोई ग्रहण नहीं कर सकता। १. मुमुक्षु-मन किसके कारण है ? आत्माके कारण?
प्रभुश्री-मन वशमें न रहता हो तब भी आत्मामें रहता है। १. मुमुक्षु-आत्माका उपयोग मनमें जाये तो काम करता है।
प्रभुश्री-मन वचन काया तीन योग हैं। वीतरागके प्रतापसे तपगच्छ, ढुढिया, वैष्णव कुछ नहीं रहा। यह तो आत्माकी बात है। आत्माके बिना मन कुछ नहीं कर सकता। वह तो जड़ है। चैतन्य है सो चैतन्य है।
१. मुमुक्षु-"चंद्र भूमिको प्रकाशित करता है, उसकी किरणोंकी कांतिके प्रभावसे समस्त भूमि श्वेत हो जाती है, परंतु चंद्र कुछ भूमिरूप किसी कालमें नहीं होता। इस प्रकार समस्त विश्वका
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