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उपदेशामृत +“जीव, तुं शीद शोचना धरे, कृष्णने करवू होय ते करे." "होनहार बदलेगा नहीं और बदलनेवाला होगा नहीं।" "नहि बनवानुं नहि बने, बनवू व्यर्थ न थाय;
कां ए औषध न पीजिये, जेथी चिंता जाय?" "धैर्य कर्तव्य है। उदारवृत्तिवाला मनुष्य, संपत्ति हो चाहे विपत्ति, सदैव समभावसे चलता है। वह न विजयसे हर्षित होता है और न पराजयमें दुःखी। भय आ पड़े तो उससे भागता नहीं, अथवा भय न हो तो उसे ढूँढने जाता नहीं। अन्य उसे बाधक बनें तो वह चिंता नहीं करता। वह अपने या अन्यके विषयमें बातें नहीं किया करता, क्योंकि अपनी प्रशंसा करनेकी और अन्यके दोष निकालनेकी उसे आवश्यकता नहीं है। वह व्यर्थकी बातोंकी डींग नहीं हाँकता और किसीसे सहायताके लिये आजिजी नहीं करता।
प्रत्येक मनुष्यको आपत्ति और विघ्नोंके लिये सदा तत्पर ही रहना चाहिये। भाग्यमें चाहे जो लिखा हो सुख या दुःख, उसके सामने डटनेका एक ही उपाय है 'समता, क्षमा, धैर्य' । कभी हिम्मत न हारें। किसी भी प्रकारकी आपत्ति आये या चाहे जैसी दुर्घटना हो जाये तो भी किसी मनुष्यको अपना अभ्यास नहीं छोड़ना चाहिये । जितना उच्चतम और विस्तीर्ण ज्ञान वह प्राप्त करेगा वह सब उसीके उपयोगमें आयेगा।"
काल विकराल! भयंकर दुषमकाल, अनेक जीवात्माओंके पुण्यकी हानि, दुराचरण, विषयकषाय, मायामोहके प्रबल कारण-निमित्त एकत्रित कर आत्माका अहित कर देता है। कर्मोदयके अधीन जीव बहुत कर्म बाँध लेता है। जीवको अपने आत्माके प्रति थोड़ी भी दया नहीं आई और इंद्रजाल जैसे इस संसारमें वह गोते लगा रहा है। उनमेंसे कोई भाविक आत्मा होगा वह धर्मके कारण-सत्संग, सत्पुरुषके वचन-पर दृष्टि रखकर अपना पुरुषार्थ सुल्टा करेगा, प्रमाद छोड़कर जाग्रत होगा। सावधान होने जैसा है, कालका भरोसा नहीं है। आयुष्य क्षणभंगुर है। योग्यताकी कमीके कारण कुछ लिखा नहीं जा सकता।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
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श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास,
भाद्रपद सुदी७, १९८४, शुक्र ता.२१-९-२८ १"जाण्युं तो तेनुं खलं, ते मोहे नवि लेपाय; सुखदुःख आव्ये जीवने, हर्ष शोक नवि थाय." इस भवको सब दुखनको, कारण मिथ्याभाव;
तिनकू सत्ता-नाश करे, प्रगटे मोक्ष-उपाव. _+ जीव! तू क्यों शोच करता है? कृष्णको जो करना होगा (प्रारब्धमें होगा) वही होगा।
१. जानना तो उसीका यथार्थ है जो मोहसे लिप्त नहीं होता। और सुखदुःख आनेपर जिसके मनमें हर्ष या शोक उत्पन्न नहीं होता।
२. इस भवके सब दुःखोंका कारण मिथ्याभाव (मिथ्यात्व) है। इसका जो सत्तासे (मूलसे) नाश करता है वही मोक्षका उपाय प्रकट हुआ समझना चाहिये।
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