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कल्याणकारके
अन्यः स्वदोषकृतरोगनिपीडितांगो।। बध्नाति कर्म निजदुष्परिणामभेदात् ॥ भाषितमुग्रादित्यैर्गुणैरुदारैस्समग्रमुग्रादित्यं ।
भाषितनमितजयंतं । समग्रामुग्रादित्यम् ॥ इत्युग्रादित्याचार्यविरचितकल्याणकारके हिताहिताध्यायः ।
अध्ययन नहीं करता है, वह अपने दोषों के द्वारा उत्पन्न रोगों से पीडित शरीरवाला होने से, चित्त में उत्पन्न होनेवाले अनेक दुष्ट परिणामों के विकल्प से कर्म से बद्ध होता है । अतएव मुनियों को भी आयुर्वेद का अध्ययन आवश्यक है।
इस प्रकार गुणों से उदार उग्रादित्याचार्य के द्वारा यह कल्याणकारक महाशास्त्र कहा गया है । जो इसे अध्ययन करता है, नमन व स्तुति करता है, वह उग्रादित्य [ सूर्य ] के समान तेज को प्राप्त करता है ।
इसप्रकार श्रीउग्रादित्याचार्यकृत कल्याणकारककी भावार्थदीपिका टीकामें
हिताहिताध्याय समाप्त हुआ ।
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इति कल्याणकारकं समाप्तम्
श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछनम् । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥
इति भद्रं।
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