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कल्याणकारके
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. भावार्थ:-धूल से मिला हुआ पानी अथवा केवल धूल से अप्रत्यक्षरूप से अपने मस्तक को मर्दन कर लेता है अर्थात् अकस्मात् उसे मालूम हुए विना ही शिर में लगा हुआ मिलता है अथवा उसे अपना मस्तक धूवों व हिम से व्याप्त हुआ सा मालूम होता है तो वह पांच महीने में मरता है ॥ १६ ॥
चतुर्थ मासिक मरण लक्षण. यदभ्रहीनेऽपि वियत्यनूनसद्विलोलविद्युत्पभया प्रपश्यति । ...... यमस्य दिग्भागगतं निरंतर प्रयात्यसौ मासचतुष्टयादिवम् ।। १७ ॥
भावार्थ:-जो, मनुष्य सदा दक्षिण दिशाके आषाश में मेघ का अस्तित्व न होनेपर भी बिजली की प्रभा के साथ, प्रंचड व चंचल आकाश को देखता है वह मनुष्य चार महीने में अवश्य स्वर्ग को चला जाता है ॥ १७ ॥
त्रैमासिकमरण लक्षण. यदा न पश्यत्यवलोक्य चात्मनस्तनुं प्रसुप्ते महिषोष्ट्रगईभान् । . "प्रवातुरारुह्य दिवा च वायसैमृतोऽपि मासत्रयमेव जीवति ॥ १८ ॥
भावार्थ:-जिसे देखने पर अपना शरीर भी नहीं दिखता हो, स्वप्न में सवारी करने की इच्छा से मैंस, ऊंट, गधा, इन पर चढ कर सवारी करते हुए नजर आवे तथा तथा दिन में कौवों के साथ मरा हुआ मालूम हॉवे तो वह तीन महिना पर्यंत ही जीयेगा ॥ १८ ॥
द्विमासिकमरणचिन्ह. सुरेंद्रचापं जलमध्यसस्थितं प्रदृश्य साक्षात् क्षणमात्रतश्चलं । . विचार्य मासद्वयजीवितःस्वयं परित्यजेदात्मपरिग्रहं बुधः ॥ १९ ॥
भावार्थ:-जिस मनुष्यको जल के बीच में साक्षात् इंद्रधनुष दीखकर क्षण भर में विलय होगया है ऐसा प्रतीत हो तो वह बुद्धिमान् मनुष्य अपना जीवन दो महीने का अवशेष जानकर सर्व पारे ग्रहों का परित्याग करें ॥ १९ ॥
मासिकमरणचिन्ह. यदालकादर्शनचंद्रभास्करप्रदीप्ततेजस्सुनरी न पश्यति । " समक्षमा प्रतिचिमन्यथा विलोकयेद्वा स च मासमात्रतः।। २०॥
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