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श्री धर्मवीर, दानवीर, जिनवाणीभूषण, विद्याभूषण,
सेठ रावजी सखाराम दोशी. धर्मवीर !
___ आपने अपने जीवन को जैनधर्म की प्रभावमा, जैनसाहित्य की सेवा व जैनसाधुवोंकी सुश्रूषा में लगाया था । आप वर्तमानयुगके महान् धार्मिक नेता थे । आपके ही आंतरिक सत्प्रयत्न से इस महान् ग्रंथ का उद्धार हुआ है । इस का आस्वाद लेनेकी अभिलाषा अंतिम घडीतक आपके मन में लगी थी। परंतु आप अकस्मात् स्वर्गीय विभूति बन गए । इसलिए आपके द्वारा प्रेरित, आपके ही सहयोग से संपादित, आपकी इस चीज को आपको ही समर्पण कर देता हूं, जिससे मैं आप के अनंत उपकारोंसे उऋण हो सकूँ । इति.
गुणानुरक्त-- वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री.
संपादक.
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