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शास्त्रसंग्रहाधिकारः ।
(५४७)
कटीकतरुण. प्रोक्ता द्वादशमर्मलक्षणगुणाः कुक्षौ तश वक्षसि । प्रायः पृष्ठगतान्यपि प्रतिपदं वक्षामि मर्माण्यहम् । वंशस्योभयतः कटीकतरुणे पृष्ठस्य मृले प्रति ॥
श्रोण्यस्थ्याश्रितमर्मणीह कुरुतः शुक्रक्षयः क्लीवताम् ।। ६१ ॥ . भावार्थ:-इस प्रकार कुक्षि व वक्षस्थान में बारह प्रकार के मर्मस्थान कहे गये हैं। और पीठमें रहनेवाले मर्मस्थानों को भी कहेंगे । पीठ के वंशास्थि के दोनों तरफ, पीठ के मूल में कमर के दोनों हड्डियो में " कटीकतरुण" नामक दो मर्म रहते हैं। वहां क्षत होवें तो शुक्र का नाश व नपुंसकता होती है ।। ६१॥
___ कुकुंदर, नितम्ब, पावसांधममलक्षण. पृष्ठस्योभयपार्थयोर्घनबहिर्भागे तथा मर्मणि । वंशस्योभयतः कुकुंदर इति प्रख्यातसन्नामनि ॥ तत्र स्यात्सततं नृणां क्षतमधः काये च शोफावहम् । चेष्टाध्वंसपर स्वकाशयनिजप्रच्छादनं मर्मणी ।। ६२ ॥ श्रोणीकांडधुगोपरीह नियतं बद्धौ नितंबौ ततः । शोषःकार्यमधःशरीरनिहितावन्यं च मर्माण्यतः ॥ भोणी पार्श्वयुगस्य मध्यनिलयी संधी च पाचदिका-। वसापूर्णमहोदरेण मरणं प्राप्नोति मर्त्यः क्षते ॥ ६३ ॥
भावार्थ:--पीट के दोनों पार्थी ( पंसवाडो) के बाहर के भाग में, वंशास्थि (पीठ के बांस की हड्डी) के दोनों बाजू " कुकुंदर" नाम के दो मर्मस्थान हैं। उन में चोट लग जाय तो शरीर के निचले भाग [कभर से नीचे ] में सूजन अथवा चेष्टा नष्ट होकर मरण होता है। दोनों श्रोणीकांड (पूर्वोक्त कटीकतरुण) से ऊपर के भाशय [ स्थान ] को ढकनेवाले पंसवाडे से बंधे हुए “ नितम्ब " नामक दो मर्म हैं। इन में चोट लगने से, शरीर का निचला भाग सूख जाता है और दुर्बल होकर मरण होता है । श्रोणी व दोनों पसलीयोंके बीच में “पार्श्वसंधि' नामक दो मर्म स्थान हैं। उन में चोट लगने से, उदर ( कोठा) में रक्त भरकर मृत्यु होती है ॥ ६२ ॥ ६३ ॥
बृहती, असंफलक मर्म लक्षण । वंशस्योभयभागतस्तनयुगस्यामूलतोप्यायं । पृष्ठेऽस्मिन् बृहतीद्वयाभिहितमर्मण्यत्र रक्तसुते ।।
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