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________________ क्षुद्ररोगाधिकारः (३९३) RANAALAN वमन में सक्तुप्रयोग. शर्कराबहुलनागलवंगै- । स्संस्कृतं मगधजान्वितलाजा ॥ तर्पणं सततमेव यथाव- । गक्षयेत्तपि हितं वमनेषु ॥४८॥ भावार्थ:--शक्कर, बडी इलायची, नागने शर, लवंग इन से संस्कृत व पीपल के चूर्ण से युक्त, लाजा के ( खील ) पण को, घमन में तृष्णा से पीडित रोगियों को पखला तो अत्यंत हितकर होता है । ४८ ॥ कोलमज्जसहितामलकाना- । मस्थिचूर्णमथवा सितमिश्रम् ॥ . भक्षयेत्सकलगंधासताभिः । नस्यमप्यतिहितं दमनेषु ।। ४९ ॥ . भावार्थ:- देर की गिरी, और आंबले की गुठली की गिरी, इन के चूर्ण में शक्कर मिलाकर खिलाना, अथवा सम्पूर्ण सुगंध औषधि और शक्कर से नस्य देना वमन रोग में अत्यंत हितकर है ॥ ४९ ॥ ___ छार्द में पथ्यभोजन । । भक्ष्यभाज्यबहुपानकलेहान् । स्वादुंगधपरिपाकविचित्रान् ॥ - योजयेदिह भिषग्वमनाते- । प्वातुरेषु विधिवविधियुक्तान् ॥५०il ........ भावार्थ:-वमन से पीडित गोगयों के लिये कुशल वैद्य स्वादिष्ट, सुगंध व अच्छीतरह से किये गये योग्य भक्ष्य, भोजनद्रव्य, पानक व लेहों की विधिपूर्वक योजना करें॥५०॥ अथारोचकरोगाधिकारः। अरोचक निदान । दोषवंगबहुशोकनिमित्ता- । भोजनंवरुचिरप्रतिरूपा । प्राणिनामनलवैगुणतः स्यात् । जायंत स्वगुणलक्षणलक्ष्या ।। ५१॥ . भावार्थ:---यातापित्तादि दोषों के प्रकुपित होने से, शोक भय, क्रोध इत्यादि कारण से वे जठराग्नि के वैगुण्य से, प्राणियों को भोजन में अप्रतिम अरुचि उत्पन्न होती है जो कि, अपने २ गुणों के अनुसार तत्तलक्षणों से लक्षित देखे जाते हैं । १ खीलके चूर्ण ( सत्तु ) व अन्य किसीके सत्तु ऑको प.लरस, पानी, दृध आदि द्रव पदार्थ में ..भिगो दिया जाता है उस तर्पण कहते हैं । यहां तो खील के चूर्ण को पानी में भिगो कर और उक्त शकर आदि को डालकर. खावे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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