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________________ (३८०) . कल्याणकारके धाच्याझ्याख्याभयानामुदधिकफनिशाशंखतुत्थामृतानाम् ॥ यष्टयाहापिप्पलीनागरवरमरिचानां विचणे समांशं । यष्टिकाथेम पिष्टं शमयति गुलिका नेत्ररोगानशेषान् ।। २८८ ॥ भावार्थ:- सुवर्णभस्म, ताम्रभस्म व " रजतभस्मको समांश लेकर अथवा मोतीभस्म व प्रवालभस्म को समभाग लेकर उसमें आंवला, बहेडा, हरड, समुद्रफेन [ समुद्र झाक ] हलदी, शंख, तूतिया, गिलोय, मुलैठी, पीपल, सोंठ, कालीमिरच इनके समांश चूर्गको. मिलावे। फिर मुलहटीके काथसे अच्छीतरह पीसकर गोली बमा। वह गोली (नेत्र में घिसकर लगानेसे ) समस्त नेत्ररोगोंको नाश करती हैं ॥ २८६ ॥ तुस्थाद्यंजन. तुत्थं चंदनरक्तचंदनयुतं काश्मीरकालागुरु-1... प्रोद्यत्मततमालचंद्रभुजगास्सर्वे समं संमिताः ॥ नीलाख्यांजनमत्र तद्विगुणितं चूर्णीकृतं कालिका-। . न्यस्तं नागशलाकयांजितमिदं सौभाग्यदृष्टिमदम् ॥ २८९ ॥ भावार्थ:-सूतिया, चंदन, रक्तचंदन, केशर, कालागरु, पारा, तमालपत्र, कपूर, शीसा इनको समान अशमें लेकर उसमें नीलांजनको द्विगुणरूपसे मिलावें । उन ‘सबको चूर्ण कर काजल तैयार करें। उसे करण्ड य शीशी में रखें और शीसेकी शलाकासे ( आंखमें ).लगावें तो नेत्र सौभाग्य से युक्त होता है ॥२८९॥ प्रसिद्ध योग. पादाभ्यंगः पादपूज्यार्चिताय । नस्य शीतं चांजनं सिद्धसेनैः ।। अक्षणामध्नस्तपणं श्रीजटाख्य । विख्याता ये दृष्टिसंहारकाले ॥२९॥ भावार्थः --~-दृष्टिनाशस बचने के लिये श्री पूज्यपाद स्वामी के. पादाभ्यंग द्वारा पूजित अर्थात् कथित, सिद्धसेन स्वामी द्वारा प्रतिपादित शीतनस्य व शीतांजन और जयचार्य द्वारा , कथित अक्षितर्पण, शिरोतर्पण, ये प्रयोग संसारमें प्रसिद्धि को प्राप्त हुए हैं ।। २९० ॥ सूक्ष्माक्षराभीक्ष्णनिरीक्षणीध- । दीपप्रभादर्शनतो निवृत्तिः ॥ शश्वद्विनश्यत्प्रवरात्मदृष्ट- 1 दृष्टातिरक्षेति समंतभद्रैः ।। २९१ ॥ भावार्थ:--सूक्ष्म अक्षर, और · उज्वल दीपक आदिकी प्रभा को हमेशा देखनसे निवृत्त होना. यही सदा. विनाश स्वभाव को धारण करनेवाली, श्रेष्ट अपनी दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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