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( ३६८)
कल्याणकारक
srer रोगोंक नाम. वा शिरानिगदितावथपाकसंज्ञा - । वप्यन्यतश्च पवनोऽलस एव पूयः । वातादिपर्यय समंधविशेषिताभि- । यंदाच साधुभिरिहाधिकृतास्तु वेध्याः ॥ २४९ ॥
भावार्थ:- शिरोत्यात, शिराहर्ष, सशोथ नेत्रपाक, अशोथ नेत्रपाक, अन्यतोयात प्याउस, वातपर्येय, चार प्रकारका अधिमंथ, चार प्रकारका अभिष्यंद, ये ९५ रोग वेवन करने साध्य होते हैं ऐसा महर्षियोंने कहा है ॥ २४९ ॥
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शस्त्र कर्मस वर्जित नेत्ररोगोंके नाम. पिष्टार्जुनेयमपि धूमनिदर्शिशुक्ति- । मक्किन्नवर्तकफपित्तविदग्धदृष्टि || शुष्काक्षिपाकमपि शुक्लमथामलकादि । प्रक्लिन्नवर्त्मक फसग्रथितं च रोगः ।। २५० ॥ तान् शस्त्रपात पहत्य विशेपितैश्व । सपिजरुपचरेद्विधिना विधिज्ञः ॥ आगंतुजावथ चयाविह दृष्टिरोगौ । तावप्यशस्त्रविधिना समुपक्रमेत ।। २५९ ॥
भावार्थ:- पिष्टक, अर्जुन, धूमदर्शी, अक्लिन्नवर्त्म, कफविदग्धदृष्टि, पित्त, विदग्धदृष्टि, शुष्काक्षि, पाक, शुक्र, अम्लाध्युषित, क्लिन्नवर्त्म, बलासग्रथित इन १२ रोगों में शस्त्रकर्मका प्रयोग न करके योग्य औषधियोंके विधिपूर्वक प्रयोगसे ही कुशल वैध चिकित्सा करें । आगंतुक दो रोगों को भी शस्त्र प्रयोग न कर औषधियोंसे ही शमन करना चाहिए ।। २५०-५१ ॥
थाप्य रोगोंके नाम व असाध्य नेत्ररोगोंक नाम. काचाः षष्यधिक पक्ष्मगतप्रकोपाः । याध्या भवस्यभिहिताः पुनरप्यसाध्याः ॥ तान्वर्जयेदनिल शोणितसन्निपातात् । प्रत्येक शोपि चतुरचतुरश्च जातान् ।। २५२ ॥ मत्थमेकमपि पित्तकृतौ तथा द्वौ । द्वावेव वाह्यजनिती च विववर्जयेतान् ॥
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