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क्षुद्ररोगाधिकारः ।
(२९९) जिसमें ज्वर व ताप होता है, उसे इरिवल्ली समझकर उपशामक औषधियों से उसकी चिकित्सा करें ॥४४॥
कक्षालक्षण. करहृदयकटीपासकक्षपदेशे । परिवृतबहुपित्तोभदूतविस्फोटकाः स्युः ॥ ज्वरयुतवरकक्षाख्यां विदित्वेंद्रपुष्पं ।
मधुकतिलकलायालेपनान्यत्रकुर्यात् ॥ ४५ ॥ भावार्थ:-हाथ, हृदय, कटी, पार्थ, कंधा, कक्षा इन प्रदेशोंमें अत्यधिक पित्तके विकार से होनेवाले विस्फोटक ( फोडा ) होते हैं । उनके साथ ज्वर भी यदि हो तो उसे मना कहते हैं । लवंग, मधुक, तिल व मंजीठका लेपन करना इसमें उपयोगी है ॥४५॥
गंधनामा [ गंधमाला] चिप्पलक्षण. . अभिहितवरकक्ष्याकारविस्फोटमेकं । त्वचिभवमतिपित्तोद्धतगंधाभिधानं ॥ नखपिशितमिहाश्रित्यानिलः पित्तयुक्तो ।
जनयति नखसंधी क्षिप्रमुष्णातिदुःखम् ।।४६ ॥ भावार्थ:-ऊपर कथित कक्षाके समान त्वचामें जो एक विस्फोट [ फोडा ] होता है उसे गंधनामा [ गंधमाला ] कहते हैं। वायु पित्तसे युक्त होकर नाखूनके मांसको आश्रितकर नाखूनकी संधिमें शीघ्र ही अतीव दुःखको उत्पन्न करनेवाले दाह व पाकको करता है, उसे चिप्प रोग कहते है ॥ ४६ ॥
अनुशयी लक्षण. कफपिशितमिहाश्रित्यांतरंगप्रपूयां । बहिरुपशमितोष्णामल्पसंरंभयुक्ताम् ।। विधिवदनुशयीं तामाशु शस्त्रेण भित्वा ।
कफशमनविशेषेः शोधयेद्रोपयेच्च ॥ ४७ ।। भावार्थः-प्रकुपित कफ, मांसको आश्चय करके [ विशेषकर पैरों ] एक ऐसी पिडिका व सूजनको उत्पन्न करता है, जिसके अंदर तो मबाद हो, बाहरसे शांत दीखें
और जो थोडा दाह पीडा आदिसे युक्त हो, उसे अनुशयी कहते हैं । उसको शीघ्र ही विधिके अनुसार शस्त्रसे भेदन करके, कफ शमनकर औषाधियोंके प्रयोगसे शोधन परोपण करें [ भरें] ॥४७॥
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