SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षुद्ररोगाधिकारः। (२६७) दालचीनी, तेजपात, इलायची, एवं ऐसे ही शीतगुण व मधुर रसयुक्त अन्य औषधि इनके कषाय को घी शक्कर मिलाकर पीनेस, तथा इहीं औषधियों से साधित दूध, भक्ष्य पानक व भोज्य पदार्थीको पाने आदि कार्यों में प्रयोग करनेसे, पित्त से उत्पन्न अश्मरी (पथरी ) सदा नाश होती है। जैसे कि दुनियोले राजाकी राज्य संपत्ति नष्ट होत है ॥ २४ ॥ २५ ॥ २६ ॥ कफारमरीनाशकयोग । फलत्रिकत्र्यूषणशिचित्रकै- । विडंगकुष्ठवरणैस्तुटित्रयैः (?) ॥ बिडोत्थसौवर्चलसैन्धवान्वितैः । कपायकल्कीकृतचारुभषनैः ॥२७॥ विपकतेलाज्यपयोन्नभक्षणः । कषायसक्षारयुतैस्सपानकैः ।। सुपिष्टकल्कैः कफजाश्मरी सदा । तपोगुणस्संहतिवद्विनश्यति ॥ २८ ॥ भावार्थ:-त्रिफला [ हरड बहेडा आंवला ] त्रिकटु [ सोंठ मिरच पीपल ] सैजिन, चीताकी जड, वायविडंग, कूट, वरना, बड़ी इलायची, छोटी इलायची, बिड नमक, काला नोन, सेंधालोण इन औषधियोंके कल्क व कषायसे पकाये हुए तेल, घी, दूध, व अन्नके भक्षण से, क्षारयुक्त कपायको पीनेसे एवं अच्छीतरह पिसे हुए कल्कके सेवनसे कफज अश्मरी रोग नष्ट होता है जिस प्रकार कि तपोगुणसे संसार का नाश होता है |॥ २७ ॥ २८ ॥ पाटलीकादिवाथ. संपाटलीकैः कपिचूतकांत्रिभिः । कृतः कपायोश्मजतुपवापितः ॥ सशर्करः शर्करया सहाश्मरीं । भिन्नत्ति साक्षात्सहसा निषेवितः ॥२९॥ भावार्थ:पाडल, अम्बाडा, ( अथवा अश्वत्थभेद ) इन वृक्षोंके जडके कषाय में शिलाजीत और शक्कर मिलाकर पीने से शर्करा तथा अश्मरी रोग दूर होता . . . - कपोतकादि क्वाथ । कपोतक्कैः सहशाकजैः फलैः । सविष्णुकांतः कदलांबुजायैः ॥ श्रुतं पयष्टंकणचूर्णमिश्रितं । सशर्करेंटुं प्रपिवेत्सशर्करी ॥ ३० ॥ भावार्थ:--बाही, विष्णुकांत, शेगुन वृक्षका फल, सेमर, हिज्जल वृक्ष [ समुद्र ।। फलं ] इनके कपाय में सुहागेके चूर्ण शक्कर और कपूर मिलाकर शर्करा रोगवाला पीवे तो रोग शांत होता है ॥ ३० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy