________________
(२१६)
कल्याणकारके . तब उसे बारीक चूर्ण कर कपडे से छान लें [. इस क्रिया से लोहभस्म हो जाता है ] फिर इस भम्मको घी शक्करके साथ मिलाकर, उसे कपडेसे छान लेवें। शरीरबल, अमिबल आदि देखकर सतत सेवन करें तो वह कुष्ट, लिहा, अर्श, पाण्डु आदि रोगोंको दूर कर शरीरबल वय व सुखको उत्पन्न करता है । १११ ॥ १२० ॥ १२१ ॥
लोह भस्म फल. जीर्णामहायस्कृतिभेपजेऽस्मिन । रोगानुरूपलवणाम्लविवर्जितान्नम् ।। मुक्न्वा तुलामेतदिहोपयुज्य । जीवेदनामयशरीरयुतः शतायुः ॥ १२२ ॥
भावार्थ:--उपर्युक्त प्रकार से तैयार किये हुए तीरणलोहके - भस्म को - उपयोग करते समय रोगके बलाबल को देखकर लवण खंटाई रहित भोजन करते हुए यदि एक तुला [५ सेर ] प्रमाण इस को सेवन करें तो निरोगी होकर सौ वषर्तक जीता है अर्थात् यह रसायन है ॥ १२२॥ .
नवायलचूर्ण । मुस्ताविडंग त्रिफलाग्निकैस्स-घोषं विचूर्ण्य नवभाग समं तथायः- ॥ चूर्ण सिताज्येन विमिश्रितं तत् । संभक्ष्य मंशु शययत्यधिकान्विकारान १२३
भावार्थ:- नागरमोथा, वायुविडंग, व चित्रक, त्रिकटु इन को समभाग लेकर चूर्ण करके उसके नौ भाग लोहभरम मिला। फिर उसे शक्कर व वीके साथ मिलाकर खाने से शीघ्र ही पाण्ड आदि अनेक रोग उपशान्त होते हैं ।। १२३ ॥ एवं नवायसमिति प्रथितापधाख्यं । कृत्वोपयुज्य विधिना विविधप्रकासन् ॥ पाण्डप्रमेहादजांकुरदुष्टकुष्ठ-- । नाडीव्रणक्रिभिरुजः शमयेन्मनुष्या: ॥१२४ ॥
भावार्थ:-- इस प्रकार नवापस नामक प्रसिद्ध ओपथि को तैनार कर लो विधि पूर्वक सेवन करते हैं उनके अनेक प्रकारके पौड़, प्रमेह, वासीर; दुष्टकुष्ट, नाडीव्रण क्रिमिरोग आदि अनेक रोग उपशमन होते हैं ।। १२४ ।।
संक्षपस सम्पूर्णकु चिकित्सा कथन । कुष्ठनसद्विविधभेषजकल्कतोयः । पकं घृतं तिलजमप्युपहति नित्यं । अभ्यंगपानपरिषेकशिरोविरक- योयुज्य मानगचिरात्मचरपयोगः ॥ १२५ ॥
भावार्थ:---कुष्टदा अनेक कारो औषधिप्रयोगों, औषधि के कल्क-व कषायों से पक धृत का तेल प्रतिनित्य अभ्यंग, पान, मेवा व शिरोविरोचन आदि काममें उपयोग करनेसे शीघ्र कुष्ट दूर होता है ॥ १२५ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org