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संपादकीय वक्तव्य. पूर्वनिवेदन.
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सबसे पहिले मैं यह निवेदन करना आवश्यक समझता हूं कि मैं न कोई वैध हूं और न मैंने इस आयुर्वेदको कोई क्रमबद्ध अध्ययन ही किया है । इसलिए इसके संपादन में अनुवादन में अगणित त्रुटियोंका रहना संभव है । परंतु इसका संशोधन मुंबई व अहमदनगर के दो अनुभवी वैद्यमित्रोंने किया है । इसलिए पाठकों को इसमें जो कुछ भी गुण नजर आयें तो उसका श्रेय उनको मिलना चाहिये । और यदि कुछ दोष रहगये हों तो वह मेरे अज्ञान व प्रमादका फल समझना चाहिये । सहसा प्रश्न उपस्थित होता है कि फिर मैने इस कार्य को हाथमें क्यों लिया ?
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जैनाचार्योंने जिसप्रकार न्याय, काव्य, अलंकार, कोश, छंद व दर्शनशास्त्रोंका निर्माण किया था उसीप्रकार ज्योतिष व वैद्यक ग्रंथोंका भी निर्माण कर रक्खा है । जैन महर्षियो में यह एक विशेषता थी कि वे हरएक विषयमें निष्णात विद्वान् होते थे । प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद, परमपूज्य समंतभद्र, जिनसेनगुरु वीरसेन, गुणभंडार श्रीगुणभद्र, महर्षि सोमदेव, सिद्धवर्णी रत्नाकर व महापंडित आशाधर आदि महापुरुषोंकी कृतियोंपर हम एकदफे नजर डालते हैं तो आश्चर्य होता है कि इन्होने अनेक विषयोंपर किसप्रकार प्रौढ प्रभुत्व को प्राप्त किया था । प्रत्येक ऋषि अपने कालके गाने हुए हैं । उनका पांडित्य सर्व दिगंतव्यापी होरहा था । उन महर्षियोने अपने जपतपध्यान से बचे हुए अमूल्य समयको शिष्यों के कल्याणार्थ लगाया । और परंपरासे सबको उनके ज्ञानका उपयोग हो, इस हेतुसे अनेक ग्रंथोंको निर्माणकर रक्खा, जिससे आज हमलोगोंके प्रति उनका अनंत उपकार हुआ है ।
जैनसंसार में खासकर दि. जैन संप्रदाय में साहित्याभिरुचि व तदुद्धारकी चिंता बहुत कम है यह मुझे बहुत दुःख के साथ कहना पडता है । इस बात की सत्यता एक दफे दूसरे संप्रदाय के द्वारा प्रकाशित साहित्योंसे तुलना करने से मालुम हो सकती है । सत्ताकी दृष्टि से संस्कृत, हिंदी, कर्णाटक भाषाओं में दिगंबर संप्रदाय का जो साहित्य है, उतना किसीका भी नहीं है । उद्धार की दृष्टि से दिगंबरियोंके साहित्य के समान अल्पप्रमाण किसी का भी नहीं है । प्रत्युत लोग समय का फायदा लेने लगे हैं । एक तरफ से हमारे समाज के कर्णधार कई प्रकारसे साहित्य के प्रचार को रोक रहे हैं । कोई आम्नाय के पक्षपातसे प्रकाशनका विरोध कर रहे हैं, तो कोई पैसे के लोभ से दूसरों को दिखाने की उदारता नहीं बतलाते । कई शास्त्रभंडार तो वर्षों से बंद हैं। उन्हें खुलवाने का न कोई खास प्रयत्न ही किया जाता है और करने
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