________________
(१४२)
कल्याणकारके
भावार्थ:--यह पिचकारी सुवर्ण, उत्तम चांदी, ताम्र व लकडी आदि से बनाई हुई होनी चाहिये । वह अक्षत हो, उस के मुखमें एक सुंदर गोली होनी चाहिए । अंदर [ अग्रभाग में ] का छिद्र शिशु, कुमारों युवावस्थावालोंके लिए, क्रम से, पके हुए मूंग, अरहर, व मटरके बराबर होना चाहिए । इस प्रकार के लक्षणोंसे पिचकारी तैयारी करें॥ ५० ॥
वस्ति के लिए औषधि । सतैलघृतदुग्धतक्रदधिकांजिकाम्लद्रवै- । स्त्रिवृन्मदनचित्रबीजकविपकमूत्रेस्समम् ॥ खजाप्रमथितेशृतैस्सह विमिश्रितैः कल्किते। महौषधमरीचमागधिकसैंधवोग्रान्वितैः ॥ ५१ ॥ सदेवतरुकुष्टहिंगुबिडारकैलात्रिबृ-। द्यवान्यतिविपासयष्टिसितसर्षपैस्सर्षपैः ।। सुपिष्टवरभेषजः पलचतुर्थभागांशकै ॥
विलोड्य मथितं कदुष्णमिह सेचयेद्धस्तिषु ॥ ५२ ।। भावार्थ:----बस्तिप्रयोग करनेके लिए, तैल, घी, दूध, तक्र, दही, कांजी ये द्रवपदार्थ, निसोत, मैनफल, एरण्डीज, इनके काढा और गोमूत्र, इनको यथामात्रा मिलाकर मथन करें । इसमें सोंठ, मिरच, पीपल, सेंधानामक, वच, देवदारु, कूट, हींग विडनमक, जीरा, इलायची, निसोत, अजवायन, अतीस, मुलेठी, सफेद सरसों, कालीसरसों इन औषधियोंको एक २ तोला प्रमाण लेकर बारीक पीस लेवें और उपरोक्त, द्रवपदार्थ में इस कल्कको मिलाकर, मंथनीसे मथें । इस प्रकार साधित औषध. अल्प उष्ण रहनेपर, बस्ति नेत्र [ पिचकारी ] में डालें ॥ ५१-५२ ॥
____ बस्तिके लिए औषध प्रमाण। इहैकनयसच्चतुः कुडबसंख्यया सव्वा । निषिच्य निपुणाः पुरा विहितनेत्रनाडीमुखम् ॥ स्वदक्षिणपदांगुलावधृतवामपादस्थितं ।
द्रवोपरि निबंधयेद्विहितबस्तिवातोद्गमम् ॥ ५३ ॥ भावार्थ:-----उस पिचकारी में ( शिशु, कुमार, युवकोंको) क्रम से एक कुड (१६ तोले ) दो कुडब ( ३२ तोले ) चार कुडन १६४ तोले ) उपरोक्त दद पदार्थ को भरकर, उस पिचकारी को, वायें पाद के सहारे रखकर दाहिने पैर की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org