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________________ (१४०) कल्याणकारके भावार्थ:--ऊपर विरेचनके लिये निषेध किये हुए रोगी भी यदि प्रक्लः पितोदेकर्स संतप्त हो, उदरमें क्रिमियों की अत्यधिकता हो, मूत्रबद्ध हो तो उनको शबर विकटुके चूर्णको गरम पानी में मिलाकर विरेचन देना चाहिए अथवा निसोत, नमक, सोंठके कषाय से चूर्ण से मृदु विरेचन कराना चाहिए ॥ ४ ॥ सर्वशरीरगत वातचिकित्सा । समस्ततनुमाश्रित पवनमुग्रमास्थापनः । प्रवृद्धमनुवासेनरिह जयेद्यथोक्तक्रमात ॥ निरूह इति सर्वदोषहरणात्तथास्थापनं ।। वयस्थितिनिमित्ततोऽर्थवशतो निरुक्तं मया ॥ ४५ ।। - भावार्थ:-समस्तशरीर में व्याप्त ( कुपित ) वायुको विधिपूर्वक आस्थापन, अनुवासन बस्तियोंसे शमन करना चाहिए । संपूर्णदोषोंको अपहरण करनेसे उसका नाम निरूह, वयस्थापन करनेसे आस्थापन पड गया है। इस प्रकार उन दोनों बस्तियों के सार्थक नाम है ॥४५॥ अनुवासनबस्तिका प्रधानत्व । अथानमनुवासनादनुवसन्न दुष्यत्यपि । प्रधानमनुवासनं प्रकटितं पुराणः पुरा ॥ ताभयमपीह बस्तियुतनेत्रसल्लक्षण- । द्रवप्रवरभेषजामयवयप्रमाणेब्रुवे ॥ ४६ ॥ भावार्थ:-अनुवासनबस्तिका उपयोग करनेपर भी आहारादिकमें (अग्निमांचः आदि) कोई दोष नहीं आता है। इसलिए इस अनुवासन बस्तिको महर्षिलोग मुख्य बतलाते हैं। आगे हम आस्थापन अनुवासन बस्तियोंकी विधि रोग, वय, अनुकूलप्रमाणेक सायर वस्तिसे युक्त पिचकारी का लक्षण, उस के प्रयोगमें आनेवाले द्रवव्य, उत्कृष्ट औषर्वि गरहका निरूपया करेगे ॥ ४६ ।। प्रतिक्षा ! जिनप्रवचनांबुधैर्विदितचारुसंख्याक्रमा-1 दिहापि गणनाविधिः प्रतिविधास्यते प्रस्तुतः !! विचार्य परमागमादधिगतो बुधैहाते । ... मुखग्रहणकारणादुल्तरार्थसंक्षेपतः ॥ ४७॥ भावार्थ:-जैनशास्त्ररूपी समुद्र में बान्तके विषय में गणनाको जो नियम है उसीको अनुसरण करके यहांपर कथन किया जावेगा । बुद्धिमान लोग समय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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