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________________ अन्नपानविधिः। सेवन करने के समय जो भोजन ( दूध, घी, भात ) आदि बनलाया है उसके सेवन करें। इस. रसायनको जो सेवन करता है वह मनुष्य निरोग होकर सुंदर शरीरवाला . बनता है एवं, महाबलशाली होकर सौ वर्षतक जीता है ।। ५२-५३ ।। ब्राम्हादि रसायन ब्राही मंडूकपर्णीमधिकतरवचाशर्कराक्षारसपि । मिश्रा संख्याक्रमेण प्रतिदिनममलस्सेवमान। मनुष्यः । रोगान्सान्निति प्रकटतरवलो रूपलावण्ययुक्तो।। जीवत्संवत्सराणां शतमिह सकल ग्रंथतत्वार्थदी ॥ ५४ ॥ भावार्थ:-ब्राह्मी, मजीठ एवं वच इनको चूर्णकर प्रतिदिन शुद्धचित्तसे घी दूध शक्कर के साथ सेवन करनेवाला मनुष्य निरोगी बनजाता है। उसकी शक्ति बढती है, सोंदर्यसे युक्त होकर एवं संपूर्ण शास्त्रोंको जाननेवाला विद्वान् होकर सौ वर्षतक जीता है ॥ ५४ ॥ वत्रादि रसायन । वज्री गोक्षुरवृद्धदारुकशतावर्यश्च गंधानिका । वर्षाभूसपुनर्नवामृतकुमारीत्युक्तदिव्यौषधीन् । हृत्वा चूर्णितमक्षमात्रमखिलं प्रत्येक वा पिबन् । नित्यं क्षीरयुतं भविष्यति नरमंद्राकतेजोऽधिकः ॥ ५५ ॥ भावार्थ:-गिलोय, गोखरु, विधारा शतावरी, काली अगर, भिलावा, रक्तपुननवा, श्वेतपुनर्नवा, वाराहीकंद, बडी इलायची, इन दिव्य औषधियोंको समभाग लेकर चूर्ण करें। इस चूर्ण को एक २ तोला प्रमाण प्रतिनित्य सेवन कर ऊपरसे दूध पीलेवें । अथवा उपरोक्त, एक २ औषधियों के चूर्ण को दूध के साथ सेवन करना चाहिये । इस के प्रभाव से मनुष्य चंद्रसूर्य से भी अधिक कांतिवाला बनजाता है ॥५५॥ रसायन सेवन करनेका नियम । मद्य मासं कषायं कटुकलवणसक्षाररूक्षाम्लवर्ग । त्यक्त्वा सत्यव्रतस्सन् सकलतनुभृतां सद्दयाव्याप्ततात्मा ।।.. क्रोधायासव्यवायातपपवनविरुद्धाशनाजीर्णहीनः । शश्वत्सर्वज्ञभक्तो मुनिगणवृषभान्पूजयेदोषदार्थी ॥ ५६ ॥ भावार्थ:-औषधसे निरोग बननेकी इच्छा रखनेवाला जीव सबसे पहिले. मद्य, मांस, कषायला पदार्थ तीखा [ चरपरा, नमकीन, यवक्षार ,आदि . क्षार, रूक्षपदार्थ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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