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________________ कल्याणकारके गुह्याक्षी आदि पत्र शाकगुण गुह्याक्षी सकुसुंभ शाकलवीराज्याजिगंधादयो । गौराम्लाम्रदलाखलाकुलहला गंडीरवेगुण्डिकाः। शिग्रजीरशतादिपुष्पसुरसा धान्यं फणी सार्जकाः । कासघ्नी क्षवकादयः कफहरास्सोष्णाः सवाते हिताः ॥३३॥ भावार्थ:-गुत्याक्षी, कुसुम्भ, शेगुनवृक्ष, सीताफल का वृक्ष, राई, अजमोद, सफेदसरसों इमली आम के पत्ते, झ्यामतमाल, कुलाहल, गण्डरिनामकशाक, कंदूरी, सेंजन, जीरा, सोफ, सोआ धनिया, फणीवृक्ष, रालवृक्ष, कटेरी. चिरचिरा आदि कफको नाश करनेवाले हैं उष्ण हैं एवं वातरोग में हितकारी हैं ॥ ३३ ॥ बंधूक आदि पत्राशाकों के गुण । बंधूक। भृगुशोलिफेनदलिता वेण्याखुकाढकी। वधापीतमधुस्रवादितरलीकावंशिनी पडगुणा । मत्स्याक्षीचणकादि पत्रसहिता शाकमणीता गुणाः । पित्तघ्नाः कफवर्द्धना बलकराः रक्तामयभ्या हिताः ॥ ३४॥ भावार्थः ---दुपहरिया का वृक्ष, भृगु वृक्ष, वनहलदी, रीठा, दलिता, पीत देवदोली, मूसांकर्णी, अरहर कचूर, कुसुमके वृक्ष, तरलीवृक्ष, त्या एक प्रकारका कांटेदारवृक्ष ) बंशिनी, मछीचना इत्यादि कों के पत्तों में इन शाकोंमें उक्त गुण मौजूद हैं। एवं पित्त को नाश करनेवाले हैं कफको बढानेवाले हैं, बल देनेवाले हैं। एवं रक्तज व्याधि पीडितों के लिये हितकर हैं ॥ ३४ ॥ शिआदिपुष्पशाकों गुण । शिग्वारग्वधशेलुशाल्मालशमीशालकसत्तित्रिणी । कन्यागस्त्यसणप्रतीतवरणारिष्टादिपुष्पाण्यपि । वातमकराणि पित्तरुधिरे शांतिप्रदान्यादरात् । कुक्षौ ये क्रिमयो भवंति नितरां तान् पातयंति स्फुटं ॥ ३५ ॥ भावार्थ:---सैंजन अमलतास, लिसोडा, सेमल, छौंकरा कमलकंदादि, तितिडीक बडी इलायची अथवा वाराही कंद, अगस्त्य वृक्ष, सन, वरना, नीम इत्यादि के पुष्प वात १ क्षुदवृक्षविशेषे, गोरक्षमुण्डीक्षुपे । २ समष्ठीलावृक्ष, किसी भाषा में शुण्डिग्नाशाक कहते हैं ३ मरुवकाक्षे. ( भरुआवृक्ष ) क्षुदतुलस्यां । ४. बग्वापाटमधुस्रवाटितरलीकावंसती सण्णिगुडा । इति पाठातरं ॥ ५ मेप्यां च । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001938
Book TitleKalyankarak
Original Sutra AuthorUgradityacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovind Raoji Doshi Solapur
Publication Year1940
Total Pages908
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ayurveda, L000, & L030
File Size18 MB
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