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जीवसमास
'जाणइ पस्सइ भुंजइ सेवइ फासिदिएण एकेण ।
कुणइ य तस्सामित्तं थावर एइंदियो तेण ॥६६॥ स्थावरजीव एक स्पर्शनेन्द्रियके द्वारा ही अपने विषयको जानता है, देखता है, भोगता है, सेवन करता है और उसका स्वामित्व करता है इसलिए वह एकेन्द्रिय कहलाता है ॥६६॥ द्वीन्द्रिय जीवोंके भेद
खुल्ला वराड संखा अक्खुणह अरिडगा य गंडोला ।
कुक्खिकिमि सिप्पिआई णेया बेइंदिया जीवा ॥७॥ तुल्लक अर्थात् छोटी कौड़ी, बड़ी कौड़ी, शंख, अक्ष, अरिष्टक, गंडोला, कुक्षि-कृमि अर्थात् पेटके कीड़े और सीप आदि द्वीन्द्रिय जीव जानना चाहिए ॥७॥ त्रीन्द्रिय जीवोंके भेद
कुंथु पिपीलय भकुण विच्छिय जूविंदगोवा गोम्ही य:।
उत्तिंगमट्टियाई णेया तेइंदिया जीवा ॥७१॥ .. कुंथु (चीटी) पिपीलक (चींटा) मत्कुण (खटमल) बिच्छू , , इन्द्रगोप, (वीर-वधूटो) गोम्ही (कनखजूरा), उत्तिंग (अन्नकीट) और मृद्-भक्षी दीमक आदि त्रीन्द्रिय जीव जानना चाहिए ॥७२॥ चतुरिन्द्रिय जीवोंके भेद
'दंसमसगो य मक्खिय गोमच्छिय भमर कीड मकडया। __ सलह पयंगाईया णेया चउरिंदिया जीवा ॥७२॥
दंश-मशक (डांस, मच्छर) मक्खी, मधुमक्खी, भ्रमर, कीट, मकड़ी, शलभ, पतंग आदि चतुरिन्द्रिय जीव जानना चाहिए ॥७२॥ . . पंचेन्द्रिय जीवोंके भेद
अंडज पोदज जरजा रसजा संसेदिमा य सम्मुच्छा।
उभिदिमोववादिम णेया पंचेंदिया जीवा ॥७३॥ अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, स्वेदज, सम्मूच्छिम, उद्भोदिम, और औपपादिक जीवोंको पंचेन्द्रिय जानना चाहिये ॥७३।।। अतीन्द्रिय जीवोंका स्वरूप
'ण य इंदियकरणजुआ अवग्गहाईहिं गाहया अत्थे ।
णेव य इंदियसुक्खा अणिंदियाणतणाणसुहा ॥७४॥ 1. सं० पञ्चसं० १, १४६ । 2. १, १४७ । 3. १, १४८ । 4. १, १४६ । 5. १, १५० ।
6.१, १५१ । । १. ध०भा० १ पृ० २३६ गा.१३५। २. ध०भा०१ पृ० २४१ गा० १३६ । तत्रेहक पाठःकुक्खिकिमिसिप्पिसंखा गंडोलारिह भक्खखुल्ला य । तह य वराडय जीवा णेया बीइंदिया एदे। ३. ध०भा० १ पृ. २४३ गा० १३७ । ४. ध० भा० १ पृ० २४५ गा० १३८ । परं तवायं पाठः-मकडय-भमर-महुवर-मसय-पयंगा य सलह गोमच्छी। मच्छी सदंस कीडा गेया चउरिदिया जीवा ॥ ५. ध० भा० १ पृ० २४६ गा. १३ । परं पत्र पाठोऽयम्--सस्सेदिम
सम्मुच्छिम उब्भेदिम ओववादिया चेव । रस पोदंड जरायुज गेया बीइंदिया जीवा ॥ 3 ब -सेवई । नब-जु विंदु । -गुंभीया, ब-गुंभीय ।
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