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________________ ७५२ पञ्चसंग्रह संदृष्टि सं० २० भवनत्रिक देव-देवियोंकी तथा कल्पवासिनी देवियोंकीबन्ध रचना बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ १०३ मिथ्यात्व १०३ सासादन ६६ मिश्र अविरत 20 m WW 6 ० संदृष्टि सं० २१ सनत्कुमारादि-सहस्रारान्त कल्पवासी देवोंकी बन्ध-रचना बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ १०१ मिथ्यात्व सासादन निश्र अविरत संदृष्टि संख्या २२ आनतादि-उपरिमौवेयकान्ट कल्पवासी देवोंकी बन्ध-रचना बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ ६७ गुणस्थान अबन्ध बन्धव्यु०. मिथ्यात्व सासादन १२ बंध मिश्र ७२ १३ अविरत संदृष्टि संख्या २३ ___ एकेन्द्रिय-धिकलेन्द्रिय जीवोंकी बन्ध-रचना __ बन्ध-योग्य सर्व प्रकृतियाँ १०६ मिथ्यात्व १०६ १३ सासादन संदृष्टि संख्या २४ बन्ध-योग्य प्रकृतियाँ ११२ मिथ्यात्व १०७ सासादन ६४ अविरत ३७ प्रमत्तविरत सयोगिकेवली १११ प्रमत्तविरतमें वहाँ व्युच्छिन्न होनेवाली ६, आहरकद्विकके विना अपूर्वकरणकी ३४, अनिवृत्तिकरणकी ५ और सूक्ष्म साम्परायकी १६, इस प्रकार सबको जोड़नेसे ६१ प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति बतलाई गई है। ५ ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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