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________________ जीवसमास छत्तीस भेदोका वर्णन चउ-इयरणिगोएहिं जुआ बत्तीसा य होइ छत्तीसा । बादर-सुहुमेहिं तहा पञ्जत्ता इयरसंखेहि ॥३८॥ पूर्वोक्त बत्तीस भेदोंमें बादर चतुर्गतिनिगोद पर्याप्तक, बादर चतुर्गतिनिगोद-अपर्याप्तक, बादरनित्यनिगोद पर्याप्तक और बादर नित्यनिगोद-अपर्याप्तक ये सप्रतिष्ठितके चार भेद और मिलानेपर छत्तीस जीवसमास हो जाते हैं ॥३८॥ (देखो सं० सं० ५) अड़तीस भेदोंका वर्णन "पुव्वुत्ता छत्तीसा अट्टत्तीसा य सा होइ । अपइट्ठिएहिं सहिया दो जीवसमासएहि च ॥३९॥ । पूर्वोक्त छत्तीस भेदोंमें अप्रतिष्ठित वनस्पतिके पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीवसमास और मिला देनेपर अड़तीस जीवसमास हो जाते हैं ॥३६॥ ( देखो सं० सं० ६) अड़तालीस भेदोंका वर्णन-- "सोलस जीवसमासा अलद्धिपजत्तगेसु जे भणिया । तेहिं जुआ बत्तीसा अडदालीसा य सा होइ ॥४०॥ लब्ध्यपर्याप्तकोंमें जो पहले सोलह जीवसमास कहे गये हैं, उनसे बत्तीस जीवसमास युक्त करनेपर अड़तालीस भेद हो जाते हैं ॥४०॥ ( देखो सं० सं० ७) चौपन भेदोंका वर्णन 'अट्ठारसेहिं जुत्ता अलद्धिपज्जत्तएहिं छत्तीसा। जीवसमासेहिं तहा चउवण्णा *जाण णियमेण ॥४१॥ लब्ध्यपर्याप्तकोंके अठारह जीवसमासोंके साथ पूर्वोक्त छत्तीस जीवसमास युक्त करने पर चौपन भेद हो जाते हैं, ऐसा नियमसे जानना चाहिए ॥४१॥ ( देखो सं० सं० ८) सत्तावन भेदोंका वर्णन उणवीसेहि य जुत्ता अलद्धिपजत्तएहिं अडतीसा । जीवसमासेहिं तहा सयवण्णा सा य विण्णेया ॥४२॥ लब्ध्यपर्याप्तकोंके उन्नीस जीवसमासोंके साथ पूर्वोक्त अड़तीस जीवसमास युक्त करने पर सत्तावन जीवसमास हो जाते हैं, ऐसा जानना चाहिए ॥४२॥ ( देखो सं० सं० ६) इस प्रकार जीवसमासप्ररूपणा समाप्त हुई पर्याप्तिप्ररूपणा "जह पुण्णापुण्णाइं गिह-घड-वत्थाइयाई दव्वाई। तह पुण्णापुष्णाओ पजत्तियरा मुणेयव्वा ॥४३॥ 1. सं० पञ्चसं० १, १०८-१०६। . १, ११२-११३ । 3. १, ११५। 4. १, ११६ । 5. १, ११७ | 6. १, १२७ । १. गो० जी० ११७ । * ब -जाणि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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