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________________ पञ्चसंग्रह वेदकसम्यक्त्वे बन्धस्थानानि अष्टाविंशतिकनवविंशतिकत्रिंशककत्रिंशत्कानि चत्वारि भवन्ति २८।२।। ३०॥३१ । उदयस्थानानि चतुर्विंशतिकं उपरिमनवकाष्टकद्वयं च वर्जयित्या अन्यान्यष्टौ २१२५।२६।२७। २८।२६।३०।३१ ॥४६२॥ - उसी वेदकसम्यक्त्व में अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीसप्रकृतिक चार बन्धस्थान; तथा चौबीस और उपरिम दो स्थानोंको छोड़कर शेष आठ उदयस्थान होते हैं ॥४६२॥ वेदकसम्यक्त्वमें २८, २९, ३०, ३१, ये चार बन्धस्थान और २१, २५, २६, २७, २८, २६, ३०, ३१ ये आठ उदयस्थान होते हैं। चउरो हेट्ठा छाउवरि खाइए संता हवंति णायव्वा । .. चउवीसं वज्जुदया अडवीसाई हवंति बंधा य ॥४६३॥ खाइयसम्मत्ते बंधा ५-२८।२६।३०।३।३। उदया १०-२१।२५।२६।२७।२८।२६।३०॥३१॥ है।८। संता १०-१३।१२।१1801201७६७८१७७।१०। क्षायिकसम्यक्त्वे चत्वारि सावस्थानान्यधःस्थानानि पडुपरिष्टानि, एवं दश सत्वस्थानानि क्षायिकसम्यग्दष्टौ भवन्ति । चतुर्विशतिकं वजयित्वा उदयस्थानानि दश । अष्टाविंशतिकानीनि पञ्च बन्धस्थानानि भवन्ति ज्ञातव्यानि ॥४६३॥ चायिकसम्यक्त्वे बन्धस्थानपञ्चकम् २८।२६।३०।३१।१ । उदयस्थानदशकम् २१।२५।२६।२७।२८। २६॥३०॥३१।६।८ । केवलिसमुद्धातापेक्षया विंशतिकस्योदयोऽस्ति । सत्वस्थानदशकम् ६३।१२।११।१०। ८०७६।७८१७७।१०। । __ क्षायिकसम्यक्त्वमें चार अधस्तन और छह उपरिम ये दश सत्तास्थान होते हैं, ऐसा जानना चाहिए । उदयस्थान चौवीसको छोड़करके शेष सर्व, तथा बन्धस्थान अट्ठाईसको आदि लेकरके शेष सर्व होते हैं ॥४६३॥ क्षायिकसम्यक्त्वमें २८, २९, ३०, ३१,१ ये पाँच बन्धस्थान, २१, २५, २६, २७, २८, २६, ३०, ३१, ६, ८ ये दश उदयस्थान; तथा ६३, ६२, ६१, ६०,८०,७६, ७८, ७७, १० और ६ ये दश सत्तास्थान होते हैं। अडवीसाई तिणि य बंधा सादम्मि संत णउदीया । इगिवीसाई सत्त य उदया अड सत्तवीस वञ्जित्ता ॥४६४॥ सासणे बंधा ३-२८।२६।३०। उदय। ७-२१।२४।२५।२६।२६।३०।३१। संता १-१०। सासाद नरुची बन्धस्थानानि अष्टाविंशतिकादीनि त्रीणि २८।२६।३० । सत्वस्थानमेकं नवतिकम् १० । अष्टाविंशतिक सप्तविंशतिकं च वर्जयित्वा एकविंशतिकादीनि सप्तोदयस्थानानि २१२४॥२५२६२४॥ ३०॥३१ । अत्र सप्ताष्टाविंशतिके तु अनयोरुदयकालागमनपर्यन्तं सासादनस्वासम्भवान्नोक्ते ॥४६४॥ सासादनसम्यक्त्वमें अट्ठाईसको आदि लेकर तीन बन्धस्थान; नब्बैप्रकृतिक एक सत्ता. स्थान; तथा सत्ताईस और अट्ठाईसको छोड़कर इक्कीस आदि सात उदयस्थान होते हैं ॥४६४॥ सासादनमें २८, २६, ३० ये तीन बन्धस्थान, तथा २१, २४, २५, २६, २६,३०,३१ ये सात उदयस्थान हैं और ६० प्रकृतिक एक सत्तास्थान होता है। अट्ठावीसुणतीसा बंधा मिस्सम्मि णउदि वाणउदी। संता तीसिगितीसा उणतीसा होति उदया य ॥४६॥ मिस्से बंधा २-२८।२६। उदया ३-२६।३०।३१। संता २-६२१६०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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