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________________ ५०५ सप्ततिका अडवीसा उणतीसा तीसिगितीसा य बंध चत्तारि । जसकित्ती वि य बंधा सुहुमे उदयं तु तीस हवे ॥४४६।। परिहारे बंधा ४-२८।२६।३०।३१ सुहुमे बंधा ।-१ । उदयं १-३०। परिहारविशुद्धौ अष्टाविंशतिक नवविंशतिक-त्रिंशकैकत्रिंशत्कानि चत्वारि बन्धस्थानानि । परिहारविशुद्धिसंयमे बन्धस्थानचतुष्कम् २८।२६।३०।३। उदयस्थानमेकम् ३०। सत्त्वस्थानचतुष्कम् ६३।१२।११ १०। सूचमसाम्पराये सूचमसाम्परायो मुनिरेका यशस्कीति बनन् त्रिंशत्कमुदयागतमनुभवति । [ उदयस्थानं तु त्रिंशत्कमेकमेव । ] ॥४४६॥ उन्हीं परिहारविशुद्धि संयतोंके बन्धस्थान अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकतीस प्रकृतिक ये चार होते हैं। सूक्ष्म साम्पराय संयतोंके यशस्कोतिं प्रकृतिक एक ही बन्धस्थान और एक ही उदयस्थान होता है ॥४४॥ परिहारविशुद्धि संयतोंके बन्धस्थान २८, २९, ३०, ३१ ये चार होते हैं। सूक्ष्मसाम्पराय संयतोंके बन्धस्थान १ प्रकृतिक और उदयस्थान ३० प्रकृतिक एक होता है । संताइल्ला चउरो उवरिम दो वजिदूण चउ हेट्ठा । जहखायम्मि वि चउरो तीसिगितीसा णव अट्ठ उदयाय ॥४५०॥ संता ८-१३।१२।११1801001581७८७७। जहखाए उदया ४-३०।३१।६।। सूक्ष्मसाम्पराये सत्वस्थानान्याद्यानि त्रिनवतिकादीनि चत्वारि, उपरिमदशक-नवकद्वयं वर्जयित्वा चतुरधःस्थानान्यशीतिकादीनि चत्वारि चेत्यष्टौ । सूचमसाम्पराये बन्धस्थानमेकं १ यशस्कीतिनाम । उदयस्थानमेकं त्रिंशत्कम् ३० । सत्वस्थानाष्टकम् ६३।१२।११1१०1८०1७६७८७७। यथाख्याते नामबन्धो नास्ति । उदयस्थानानि चत्वारि त्रिंशत्केकत्रिंशत्कननकाष्टकानि ३०३१18 केवलिसमुद्धातपेक्षया उदयदशकम् २०१२११२६।२७।२८।२६।३०।३१।६।८ ॥४५०॥ उन्हीं सूक्ष्मसाम्पराय संयतोंके सत्तास्थान आदिके चार तथा उपरिम दोको छोड़कर अधस्तन चार; ये आठ होते हैं। यथाख्यात संयतोंके तीस, इकतीस, नौ और आठ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं ।।४५०॥ सूक्ष्मसाम्परायसंयतोंके सत्तास्थान ६३, ६२, ६१, ६०८०, ७६, ७८ और ७७ ये आठ होते हैं । यथाख्यात संयतोंके ३०, ३१, ६ और ८ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। चउहेट्ठा छाउवरि संतवाणाणि दस य णेयाणि । तससंजमम्मि णेया संतवाणाणि चउ हेट्टा ॥४५१॥ संता १०-६३।१२।११।१०।८०७६।७८७७।१०।६। तससंजमे संता ४-६३।१२।६११६० यथाख्याते सत्त्वस्थानानि चतुरधःस्थानानि विनवतिकादीनि चत्वारि, पदुपरितनानि सत्त्वानि अशीतिकादीनि पट । एवं दश सत्त्वस्थानानि १३।१२।११1१०1८०७१।७८७७।१०।। त्रससंयमे देशसंयमे सत्त्वस्थानानि चतुरधःस्थानानि त्रिनवतिकादीनि चत्वारि ६३।१२।११।१०॥४५॥ उन्हीं यथाख्यात संयतोंके चार अधस्तन और छह उपरितन; ये दश सत्तास्थान जानना चाहिए । त्रस-संयमवालोंके अर्थात् देशसंयतोंके चार अधस्तन सत्तास्थान जानना चाहिए ॥४५१॥ यथाख्यात संयतोंके सत्तास्थान ६३, ६२, ६१, ६०, ८०, ७६, ७८, ७७, १० और ६ ये दश सत्तास्थान होते हैं । देशसंयतोंके ६३, ६२, ६१ और ६० ये चार सत्तास्थान होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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